साधना कर यों सुरों की, सब कहें क्या सुर मिला
साधना कर यों सुरों की, सब कहें क्या सुर मिला
बज उठें सब साज दिल के, आज तू यूँ गुनगुना
हाय! दिलबर चुप न बैठो, राजे-दिल अब खोल दो
बज़्मे-उल्फ़त में छिड़ा है, गुफ्तगू का सिलसिला
उसने हरदम कष्ट पाए, कामना जिसने भी की
व्यर्थ मत जी को जलाओ, सोच सब अच्छा हुआ
इश्क की दुनिया निराली, क्या कहूँ मैं दोस्तो
बिन पिए ही मय की प्याली, छा रहा मुझपर नशा
मीरो-ग़ालिब की ज़मीं पर, शेर जो मैंने कहे
कहकशाँ सजने लगा और लुत्फ़े- महफ़िल आ गया