साधक
जलहरण घनाक्षरी छंद (8,8,8,8)
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दम हो आराधना में साधक की साधना में,
कहते हैं संत ऐसा मिलते हैं हरिहर।
निषकाम साधना ही होती है फलित प्यारे,
परहित करने को फलते हैं तरुवर।
साधक जो सच्चे होवें फक्कड़ ही रहें सदा,
राम नाम जपने में मस्त रहते अक्सर।
कहाँ मन्दिरों में ढूँढ़े मनवा तू भगवान,
ज़रा झाँक ख़ुद में ही रहता वो है भीतर।।
©सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर (म.प्र.)