सादर आभार
दिल से निभा ले जो अपने रिश्ते उसको सादर आभार है।।
इंसानी जंगल में आज लगने लगा हर रिश्ता भार है।।
अपने रिश्ते निभाने में हो रहे लोग नाकाम।
खून के रिश्तों का खून हो रहा आज सरेआम
बाहर वालो से देखो आज हमें कितना प्यार है॥
अपना कोई करे जो थोड़ी सी भी प्रगति।
रुकने लगती है अपनो की ही ह्रदयगति।
गले लगा कर फिर भी कहते तुमसे हमें प्यार बेशुमार है॥
हर कोई बस मैं और तुम में ही सिमट गया।
हम तो जैसे अब हर रिश्ते से दूर हट गया ।
औपचारिकता ही बस अब हर रिश्ते का आधार है॥
चंद चाँदी के सिक्कों ने बिगाडा सबका ईमान है।
छोटों के लिये प्यार बडौ के लिये कहाँ रहा सम्मान है।
रिश्तों के बाजार सफर में आज हर रिश्ता व्यापार है॥
जिन्होंने हमारे लिये अपना सारा जीवन कर दिया अर्पित।
क्या दिया हमने उन्हें कितने है हम उनके प्रति समर्पित।
दिय है जो हमने उन्हें वही पायेंगे,यही तो बस संसार है॥
दिल से निभा ले जो अपने रिश्ते उसको सादर आभार है॥
इंसानी जंगल में आज लगने लगा हर रिश्ता भार है ॥