सादगी
सादगी
चल रे मन दिखावे की दुनिया छोड़,
आज सादगी से मिल आते हैं। पट
दिखावे में है दुख हजार,
हम शांति घर ढूंढ आते हैं ।
सादगी में मानवता छलके,
दिखावे में दंभ दिखता है।
बोले भारी बोल औरों से,
हर पल अकड़ कर चलता है।
सादा सच्चा मानव सदा ही,
जगत के काम आता है।
पराया सुख-दुख अपनाकर,
सहायता को तत्पर रहता है।
बोले मधुर वचन हमेशा,
पर ह्रदय शीतल करता है।
ऊंचा आसन मिले न मिले,
बैठ भूमि प्रसन्नचित रहता है।
मोहिनी सूरत पा करके भी,
जो काम किसी के न आए।
हृदय शबरी सा पा कर देखो,
श्रीराम उन्हीं से मिल आए।
दिखावे वाला दम्भी मानव,
अज्ञानता में सब खोता है।
लुट जाता है सारा जीवन,
फिर आ बुढ़ापे में रोता है।
कभी समय पाकर के बंदे,
कर्मों की गठरी खोल ले।
क्या खरा- बुरा है कमाया,
समय रहते ही तोल ले।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश