साथ होते हुए भी __ जल रहे थे _ गज़ल
विचार हमारे उन्हें खल रहे थे ।
साथ होते हुए भी वे जल रहे थे।।
जलता ही छोड़ दिया हमने उन्हें,
हम भी तो परोपकार के लिए चल रहे थे ।।
लग जाना था उन्हें उठकर काम पर अपने ।
सोए ही रहे वह जाने क्या ख़्वाब पल रहे थे ।।
किया था वादा मिलने का मिलेंगे सुबह सुबह ।
हम उनके इंतजार में अकेले टहल रहे थे ।।
दिल ले लिया यह कहकर हमारा हम भी देंगे ।
अभी तक तो दिया नहीं हम मचल रहे थे।।
नहीं छोड़ी किरणे सूरज ने चांद चमकता रहा ।
देखता हूं जमाने में इंसान बदल रहे थे।।
महल चौक चौबारे कितने बना छोड़े थे मैंने ।
मेरी ही झोपड़ी बनाने के फैसले टल रहे थे ।।
संसार है “अनुनय” यह इसका सार यही।
कर्म छोड़े नहीं जिसने वही सफल रहे थे।।
राजेश व्यास अनुनय