साथ सच के जो जिया करता है
साथ सच के जो जिया करता है
ज़हर वो रोज़ पिया करता है
नेकियाँ जो भी किया करता है
कब ज़माने से लिया करता है
लोग बेशक़ से बुराई दें उसे
पर मसीहा न दिया करता है
जो भी ग़मगीन मिला है उसको
उसके दामन को सिया करता है
एक होता है जहाँ में ऐसा
हक़ की ख़ातिर जो जिया करता है
उसका अन्जाम बुरा ही होता
जो ज़माने में रिया करता है
रब के ऊपर है यक़ीं जिसको वो
सब्र दिन-रात किया करता है
इस ज़माने में वफ़ा की ख़ातिर
बस वफ़ादार जिया करता है
साथ ‘आनन्द’ जहाँ में अपना
वक़्त पर कौन दिया करता है
~ डॉ आनन्द किशोर