साथ तेरा
तूने जो छुया मेरे अधरों को
छुईमुई बन बिखर गई
चमकी जो नभ में बिजुरी
देख कर सहम गई ।
स्पर्श था तेरे हाथों का
सिंहरन बन कर सिहर गई
आलम्बन तू मेरा बना है
उद्दीपक मैं प्रिय बन गई ।
साँसों के झूले रफ्तार पकड़ते
पर मैं हिल डुल न सकी
बंधन तेरा कस्तूरी जैसा था
अपने को मुक्त कर न सकी ।
विश्वासों के घेरे में रहकर
पग से पग मिला चलती रही
राह का बन कर रहवर
नेक पथ तुझको चलाती रही ।
पीड़ा मेरी विश्व व्यापिनी बनी
पर सबकी पीड़ा हरती रही
मूरति ममता और नेह की मैं
स्रोत स्नेह का लुटाती रही ।