साथ चल सको तो हाथ बढ़ाना
ताउम्र साथ चल सको तो हाथ बढ़ाना
पूरा कर सको तो ही ख़्वाब दिखाना
ढलकता हुआ फूल हूं कांटो से घिरा
ये खार बिन सको तो हाथ बढ़ाना
ताउम्र साथ चल सको तो हाथ बढ़ाना
मैं वो शब हूं जिसकी सहर ना कोई
वो परिंदा हूं जिसकी ठहर ना कोई
सूरज से जल सको तो हाथ बढ़ाना
ताउम्र साथ चल सको तो हाथ बढ़ाना
ख़ामोशी है , बेबसी है, दर्द बहुत
अपना नही कोई पर भीड़ बहुत
मंजिल से मिल सको तो हाथ बढ़ाना
प्रज्ञा गोयल ©®