गीत- जहाँ मुश्क़िल वहाँ हल है…
जहाँ मुश्किल वहाँ हल है न घबराना ज़रा साथी।
अँधेरों में उजालों के नये दीपक जला साथी।।
कभी दिल रात में झूमे सुहाने पल कभी दिन में।
कभी माला गले में हो कभी हों फूल पग-तल में।
निराशा छोड़़ हँसता चल गई समझो बला साथी।
अँधेरों में उजालों के नये दीपक जला साथी।।
जहाँ सपने वहाँ मंज़िल मगर तू काम करता चल।
बुराई को भलाई से सदा नाक़ाम करता चल।
हो सच्चाई हृदय में साथ देता है ख़ुदा साथी।
अँधेरों में उजालों के नये दीपक जला साथी।।
बहुत झूठे मिलेंगे पर सुनो उनको भुला देना।
तुम्हारी ज़िंदगी अच्छी इसे अच्छा सिला देना।
सुनो ‘प्रीतम’ सुने तुमको उसे हँसके हँसा देना।
अँधेरों में उजालों के नये दीपक जला साथी।।
आर. एस. ‘प्रीतम’