घनाक्षरी छन्द
साथी संग तुम आओ
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झूठ खड़ा है छांव में , नगर मेरे गांव में ,
मूक है चेतन बैठे , जड़ता फैली राह में ।
हो रहें दृश्य धुंधले , दिन अच्छे जीवन में,
अंधे बेचते आईना , दुनिया के सराह में ।
अवशेष भरोसे के , बिखरे घर द्वार में ,
कैसे पहुंचे पालकी , कहार लूटे सारेराह में।
नित ही कागा कूक दे , भेद भरा बयार में ,
साथी संग तुम आओ ,देश हित की चाह में ।
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शेख जाफर खान