साथी ; आज राम घर आबेंगे
साथी ; आज राम घर आबेंगे, पूर्ण करके वचन पिता का।
असंख्य रूपों में प्रकट हो के , जन -जन को हर्षावेंगे
आज वन को त्याग राम घर आबेंगे !
झालरों और दीपों की रौशनी होगी चहुँ ओर,
पटाखों और फुलझड़ीयों की आतिशबाज़ी लोग जलाबेंगे
अमावश्या को दूर-बहुत- दूर भगाबेंगे !
किंतु; दीन दुखियों के घर को, देखो, दर काला, दीवारें काली,
नंगे देह को ढकने को बसन नहीं साबूत,
भूखे पेटों के लिए , दाना कहां से आबेंगे,
साथी, घर-घर आज दिवाली लोग मनाबेंगे !
साथी ;राम बड़े मासूम,आज जन -जन के घर आबेंगे
रेशमी बसन पहन के, चंदन तिलक लगाबेंगे,
घृत ,दूध में डूबे हुए मेबे मिश्री खाबेंगे!
खुश होक अमीर भक्तों पे कृपा विशिष्टी लूटावेंगे,
बीस ‘करोड़’ प्रजा उनकी, आँत थाम सो जाबेंगे !
साथी; राम बड़े मासूम !
राम आज फिर लौट के ,निज घर को आबेंगे,
रामराज्य देखने को मेरे ,नयन तरस जाबेंगे,
साथी ; आज राम निज घर आबेंगे
त्रिपाल बना कौशल्या का प्रसूति गृह,
भब्य मंदिर बनाने का झगड़ा-रगड़ा है,
साथी ;राम रैन बसेरा आज कहां बनाबेंगे !
साथी ; राम में इतना कौशल हैं
जो था असाध्य उसे साध लिया,
समुद्र को देखो (३० मील ) बांध दिया,
फिर क्या अपने लिए भवन बनाने नहीं पाबेंगे !
क्या हम सब यूँ ही लड़ते -मरते रह जाबेंगे
साथी ; आज राम मेरे, रुके किस द्वार,
वो आवें, जन -जन में प्रेम -प्रीत का अलख जलाबें,
अपने प्रजा जनों को, रामराज्य का सुख दिखलाबें !
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06 -11 -2018
[ मुग्धा सिद्धार्थ ]