*सात शेर*
सात शेर
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कुरेदे जख्म थे उस तीसरे ने बीच में पड़कर
हमारे रिश्ते तो वरना कभी के ठीक हो जाते
अभी भी वक्त हैं आकर गिले-शिकवे मिटा जाओ
बची हैं चार साँसे सिर्फ, इनका भी भरोसा क्या
कल के बारे में अभी सोचना क्या
कल तक तो आसमान फट भी सकता है
काँच में बाल भी पड़ा तो फिर
काँच की कोई कीमत नहीं रहती
बड़ा दिखने के चक्कर में मुसीबत मोल ले ली है
हमारे खर्च वरना आमदनियों से कहीं कम थे
इस शहर में मैं किसी को क्या बताऊंगा
यहाँ सभी को पता है, सही-गलत क्या है
हमेशा एक ही रफ्तार से जीवन नहीं चलता
सभी की जिन्दगी में एक अनहोनी भी होती है
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रचयिता :रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451