सात्यिकी
अर्जुन का है शिष्य वाे,
कृष्ण का है दुलारा वाे,
वृष्णिवंशियाे की है शान,
युद्ध मे लड़कर रखा है मान,
कृतवर्मा का विराेधी है प्रबल,
सत्य का जिसकाे मिला है सबल,
एक अक्षाेहिणी पाण्डव सेना का है अधिनायक,
वह वीर धनुर्धर, सब कला मे है लायक,
काैरवाे के हर वीर से जाे है टकराया,
युद्ध के पांचवे दिन अपने दस पुत्र है खाेये,
शिनी का है पाेता वाे, नही किसी का भय खाता,
वह वीर बड़ा विकट है,द्राेण के शतबार से अधिक है धनु काटा,
चाैदहवे दिन बड़ा खूनी समर भूरीश्रवा से किया,
वर्षाे पुरानी शत्रुता जागी, आज शत्रु काे सुलाया,
दाेनाे वीर लड़े भारी, अस्त्र शस्त्र बचा न एक,
अब मल्ल युद्ध मे भिड़े , भूरीश्रवा ने मूर्छित किया लेकर वरदान का सहारा एक,
मूर्छित काे ही मारना चाहा, लेकर तलवार हाथ,
अर्जुन ने काट डाली वह बाह,छूट गया हाथ का तन से साथ,
मूर्छा जागी शिनी सुत की, सुला दिया मृत्यु शैया पर साेमदत्त सुत काे,
आज ही दाेनाे पिता पुत्र काैरव वंशियाे काे मार गिराया,
वह वीर बड़ा कुशल याेद्धा था,शिव का वरदानी युयुधान कहलाया,
अंगराज काे भी युद्ध मे उसने कई बार ललकारा था,
आयुर्वेद का ज्ञाता वह, शल्य चिकित्सा का भी अनुभवकारी था,
सत्य का समर्थक, सात्यकि नाम उसका,
महाभारत युद्ध मे जीवित बचने वालाे में था नाम एक उसका,
वह वीर वीरता की मिशाल था,
युगांधरा पाैता उसका, किया राज विशाल था,
।।जेपीएल।।।।