साजन की विदाई
अरी सखी! सुन मैंने रात एक स्वप्न देखा;
क्या बताऊँ री मैंने कुछ अद्भुत देखा।
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दूर कहीं एक बारात सज रही थी;
और बारात वो मेरे पीछे चल रही थी।
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मैं सवार हो घोड़ी पर चली जा रही थी;
सखियाँ औ’ माताएँ बलाएँ लिए जा रही थी।
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आखिर हम वहाँ पहुँच चुके थे;
साजन हमारे जहाँ सज चुके थे।
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सभी हमारा इंतजार कर रहे थे;
और हमसे नैना चार कर रहे थे।
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मैं आगे साजन के साजन पीछे मेरे;
यूँ हो गए सखी पूरे शादी के फेरे।
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दहेज मिला इतना कि हमारी बग्गी भर गई;
विदाई पे साजन की सबकी आँखें बरस गई।
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साजन हमारे सबसे गले मिल-मिल रो रहे थे;
बाबुल से बिछड़ने के गम में अधूरे से हो रहे थे।
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हुआ फिर यूँ मैं उन्हें अपने घर ले आई;
इस तरह पूरी हो गई साजन की विदाई।
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देख सखी मैं कैसी विचित्र रस्म निभा आई;
साजन सजनी को नहीं सजनी साजन को ले आई।
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सोनू हंस