सागर
गहरा समंदर शोर करे है, हिलोरे मारे करवट के
किनारों संग ऐसे लगे है, जैसे नीर चले सट – सट के
क्या चमक बताऊ मै,तुम्है उस सागर की सिलवट के
कुछ इस तरह बिखर जाती है, लहरे हर दफा मिट- मिट के
सागर ही है जाने,वो जो इतना फैला है
शायद इसलिए धीरे- धीरे सब बना रहे उसे मैला है
अपनी गूंज है वो सुनाता वो बन रहा विषैला है
सुनामी और उफान संगी इसका, ये नही अकेला है
सागर की धड़कन मे, जीव रत्नो का बसेरा है
तु तो यात्री क्षण भर का, डाल क्यों रहा स्थायी डेरा है
न हक जमा, कह ना इसे तु मेरा है
ये सागर है, सागर है
नील ग्रह का तीन हिस्सों के घेरा है
Apurv soni
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