सागर
सागर देखो कितना गहरा।
फिर भी है ये ठहरा-ठहरा।।
मोती मिलते हैं अनमोल।
मोती जिसमें मिलते गोल।।
इतना पानी कहां से लाता।
ये तो हमको समझ न आता।।
दिखता है ये कितना प्यारा।
फिर भी है ये कितना खारा।।
आती है एकदम से लहरें।
दूर तलक ये जाकर ठहरें।।
विजय बेशर्म