सागर ने लहरों से की है ये शिकायत।
सागर ने लहरों से की है ये शिकायत,
वो कश्ती आती नहीं जिसकी थी मुझे आदत।
मेरी मौजों में घुलती रहती थी वो खिलखिलाहट,
और आँखे ढ़ुंढती थी मीलों तक वो मुहब्बत।
उम्मीद और सपने थे उसकी पतवार की ताकत,
क्या हो गई है उसे मेरी ख़ामोश गहराइयों से नफरत?
लहरों के होठों पर सज गई मुस्कुराहट,
और जवाबों ने सागर को किया नतमस्तक।
उस कश्ती के सवारों ने की थी ऐसी इबादत,
की खुदा को भी हो गई उनसे बेपनाह चाहत।
तूफानों ने तबाह कर डाली उनकी सलतनत,
राख और खाक के बीच उलझ गई उनकी किस्मत।
सितारों से कर डाली उन्होंने ऐसी मिन्नत,
की राहों ने मंजिलों का नाम लिखा जन्नत।
हवाओं में साजिशों की हुई फिरकत,
और दो दिलों की जुदाई की पढ़ी गई आयत।
एक के कब्र पर फूलों की हुई शिरकत,
और दूजे के पैरों के निशां हैं तेरे साहिलों की अमानत।