सागर ने जब जब हैं हद तोड़ी,
सागर ने जब जब हैं हद तोड़ी,
उसने लहरे अपनी विनाश की और है मोड़ी ।।
भाषा की भी अपनी सुचिता और गहराई हैं ।।
इसकी भी जब हद टूटी, यह अपयश की और लहराई हैं ।
सागर ने जब जब हैं हद तोड़ी,
उसने लहरे अपनी विनाश की और है मोड़ी ।।
भाषा की भी अपनी सुचिता और गहराई हैं ।।
इसकी भी जब हद टूटी, यह अपयश की और लहराई हैं ।