*** सागर की लहरें….! ***
“” न जाने वो कौन सी बात है ,
जो सागर की लहरें…
मुझसे कुछ कह जाती है…!
धीरे-धीरे कुछ पल में…
मेरे पांव तल से रेत सरक जाती है…!
कभी धूप और कभी छांव की परिदृश्य…
मेरे मन में, सहसा अनगिनत सवाल कर जाती है…!
कुछ सरारती हवाओं के झोंके…
मेरे मन को कुछ झुंझला जाती है…!
दूर क्षितिज पर नजर डाले,
मन की कुछ आश मेरे…
परिणामी भ्रम में, यूं ही उलझ जाती है…!
लालिमा लिए कुछ किरणें, सूरज की…
कुछ अनसुलझे सवालों को सुलझाने,
पास अपने बुलाते हैं…!
यूं ही ये सिलसिला, न जाने…
कितनी बार पुनरावृत्त हो जाती है…!
न जाने वो कौन सी बात है…
जो सागर की लहरें,
मुझसे कुछ कह जाती है…!!
*************∆∆∆************