* सागर किनारे *
सागर किनारे
खड़ी इक नदी
सदी से
इंतज़ार कर रही है
मिलन हो ना पाया
सागर से अब तक
मैं तड़पूंगी कब तक
अब सागर किनारे
उठती है लहरे
हिय-सागर में
अगन दिल जलाये
बैठा है कब से
मैं डरती ऐसे
कहीं ये दिलजला
मेरा अब
दिल ना जला दे
झुलस गये हैं
पेड़ो के पत्ते
तपस-अगन
सागर की पाकर
डर लगता
सागर-लहरों से अब
बादल-बन
जो तूफ़ान मचाती
प्यार हिये लिये
प्रिये अब
मैं इंतजार करती
सागर तीरे
तरु-पात भये है
पियरे वैसे
मैं भी
पीरी ना पड़ जाऊं
सागर-हिय
कब शीतल हो
मैं मिल जाऊं
प्रिय-हिय
मैं इंतजार करूं
मिलन प्रिय का
खड़ी अब सागर किनारे ।।
💐मधुप” बैरागी”