सागर का क्षितिज
सागर के जल का रंग
मेरे पैरों के पास
मटमैला गंदला है
थोड़ी सी दूरी पर
कुछ उजला
फिर
दृष्टि सीमा तक
धीरे-धीरे गहराता हरा
फिर
एकदम एक श्याम-रेखा
उसे कर देती है
आकाश से
आत्मसात्
सोच रही हूँ
धरती और आकाश के
इस मिलन को तो
नाम दिया गया
क्षितिज!
परन्तु यह
सागर और
आकाश का मिलन
कौन सा नाम ले भला?
क्योंकि
इसी क्षितिज के
उस पार ही तो
कहीं बसी है
रावण की लंका!
हनुमान ने कहा था,
हे राम!
ये जो समुद्र है न!
तुम्हारे शत्रुओं की
स्त्रियों के
अश्रुजल से
भर कर खारा हो गया है
तब क्या
कुल का सर्वनाश
करने वाले
रावण ने
इस निंदा और
कलंक के सागर की
थाह ली थी?
क्या नापा था
उस कुलघाती ने
इस की
गहराई को?
क्या वह खोज पाया था
अपनी ही स्त्रियों के
अश्रुजल से भरने वाले
इस खारे सागर का क्षितिज?