सागर उदास है
उस सागर की क्या
बात सुनाऊँ
वो आजकल उदास रहता है।
किनारों से दूर है
सीपियों के पास रहता है
वक्त के घोंघें
चुनता है
स्वप्नों के मूंगे
बुनता है
ज्वार की उत्तंग लहरों को
भाटे का द्वार कहता है।
कुछ कहूँ अगर तो
रोकता गुस्साता है
मेरे मौन पर
हँसता मुस्काता है
मेरी पीड़ा ओढ़ कर
मेरे आँसुओं के साथ
बहता है।
उस सागर की
क्या बात सुनाऊँ
वो आजकल
उदास रहता है।