साक्षात्कार- राजेंद्र कुमार टेलर- लेखक, ये ख़ुशबू का सफ़र- ग़ज़ल संग्रह
राजस्थान शिक्षा विभाग में उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रिंसिपल पद पर कार्यरत राजेंद्र कुमार टेलर राही जी की पुस्तक “ये ख़ुशबू का सफ़र- ग़ज़ल संग्रह“, हाल ही में साहित्यपीडिया पब्लिशिंग द्वारा प्रकाशित हुई है|
राजेंद्र कुमार टेलर राही जी ने इस पुस्तक में हृदय को छू लेने वाली बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखीं हैं| हर ग़ज़ल को पढ़कर एक ख़ुशी और अपनेपन का एहसास होता है|
राजेंद्र कुमार टेलर राही जी की पुस्तक “ये ख़ुशबू का सफ़र- ग़ज़ल संग्रह” विश्व भर के ई-स्टोर्स पर उपलब्ध है| आप उसे इस लिंक द्वारा प्राप्त कर सकते हैं- Click here
इसी के सन्दर्भ में टीम साहित्यपीडिया के साथ उनका साक्षात्कार यहाँ प्रस्तुत है|
1- आपका परिचय?
मेरा नाम राजेंद्र कुमार टेलर राही है।पिता श्री श्री राम जी और मां सरस्वती देवी ।अभी राजस्थान शिक्षा विभाग में उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रिंसिपल पद पर कार्यरत हूँ।राजस्थान विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य से एम् ए प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया है।सीकर जिले में नीमका थाना तहसील के मावण्डा खुर्द ग्राम में जन्म।
2- लेखन की प्रेरणा कहाँ से मिली?
ईमानदारी से कहूँ तो लेखन की प्रेरणा कहीं बाहर से नहीं मिली। वातावरण था ही नहीं। यह स्वतः स्फूर्त था। हाँ बचपन से ही पढ़ने का बेहद शौक रहा है। जहाँ भी साहित्य मिला खूब पढ़ा। लगता है उसी से कुछ संस्कार सृजन के बीज निकले होंगे।
3- कब से लेखन कार्य में हैं?
लेखन कब आरम्भ किया इस बारे में सोचता हूँ तो पाता हूँ कि बरसों बरस अहसास जमा करने के बाद लिखना शुरू किया है। बच्चों के गीत लिखे जमीन से जुड़ी ग़ज़लें हैं
लंबी कविताएं भी हैं पर इस संग्रह की ग़ज़लों का रंग अलग है । अगला संग्रह जो आ रहा है उसमें जमीन से जुड़ाव झलक रहा है।
4- लेखन की विधा के बारे में बताइये?
कोई भी रचना स्वतः स्फूर्त होती है। उसका खाका अंतर्मन में तैयार होता है फिर उसे लफ़्ज़ों का आकार मिलता है।
जहाँ तक विधा की बात है ग़ज़ल मुझे बहुत प्रिय है इसी विधा में कहना अच्छा लगता है। ग़ज़ल की सांकेतिकता अनूठी बनावट बहुत प्रभावित करती है।
5- आपको कैसा साहित्य पढ़ने का शौक है?
स्कूली जीवन से ही पढ़ने का बेहद शौक रहा है। कहानियों में प्रेमचंद फणीश्वर नाथ रेणु से लेकर मोहन राकेश कमलेश्वर सबको पढ़ा है। कवितायेँ सदैव आकर्षित करती रही हैं। भक्तिकाल की आध्यात्मिकता रीतिकाल का शृंगार आधुनिककाल का बेबाकी पन अच्छा लगा है। ग़ज़लें पढ़ना विशेष प्रिय रहा है। सलीमख़ान फरीद
राजेश रेड्डी जहीर कुरैशी हस्तीमल हस्ती विज्ञान व्रत सुरेन्द्र चतुर्वेदीको पढ़ना अच्छा लगता है। कुंवर बेचैन की ग़ज़लें पढ़ना हमेशा आनंद देता है।
यात्रा वृत्तांत प्रिय विधा रही है। राहुल जी से लेकर मोहन राकेश तक खूब पढ़ा लगता है हम खुद सैर कर रहे हैं।आत्मकथाएं भी जो मिली पढ़कर अच्छा लगा। ग़ज़ल कहीं भी हो सदैव अपनी ओर खींचती है। आचार्य चतुरसेन शास्त्री के उपन्यास अनमोल हैं जब भी मिलें पढ़ना चाहूँगा। रेणु जी की कहानियाँ अपनी सी लगती हैं। विजय दान देथा की कहानियां कहीं भी हो पढ़ना चाहूँगा।उनकी भाषा शैली गज़ब। महादेवी वर्मा के संस्मरण दिल से जुड़े प्रतीत होते हैं।
6- प्रस्तुत संग्रह के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
संग्रह की सारी की सारी ग़ज़लें रूमानी हैं लेकिन इनमें कहीं भी सतही पन हल्कापन नहीं है। अगर है तो वो है सिर्फ आत्मीयता अपनापन दोस्ती और पवित्र स्नेह बंधन।कभी कोई हृदय को यूँ छूता है कि अहसास के तार बज उठते हैं वही संगीत आपके सामने है।
उम्मीद है पाठक इसे बहुत पसंद करेंगे।
बहुत जल्द पाठकों को मेरे आगामी ग़ज़ल संग्रह में अहसास का अलग रंग देखने को मिलेगा जो आम आदमी से या कहें ज़मीन से जुड़ा हुआ है।
7- ये कहा जा रहा है कि आजकल साहित्य का स्तर गिरता जा रहा है।आप क्या सोचते है?
मैं नहीं सोचता ऐसा। इतना जरूर है हर युग के साहित्य का अपना अलग रंग हुआ करता है। किन्हीं दो युगों की तुलना बेमानी है। इंटरनेट के ज़माने में भी बहुत सारी पत्रिकाएं ताल ठोक के खड़ी हैंऔर अच्छा साहित्य रच रही हैं। किसी एक का नाम लेना समीचीन नहीं है पर फिर भी कादम्बिनी हंस साहित्य अमृत अहा!जिंदगी आजकल आधुनिक साहित्य ज्ञानोदय नवनीत जैसी पत्रिकाएं आश्वश्त करती हैं।
8- साहित्य के क्षेत्र में मीडिया और इंटरनेट की भूमिका आप कैसी मानते हैं?
मैं इसका सकारात्मक पक्ष देखता हूँ। सदुपयोग किया जाये तो इंटरनेट वरदान है। किसी रचना को पलक झपकते ही लाखों लोग देख सकते हैं। आप कोई भी रचना कभी भी पढ़ सकते हैं ये पहले नहीं था। ये अच्छा संकेत है।
9- हिंदी भाषा में अन्य भाषाओँ के शब्दों का प्रयोग आप उचित मानते हैं या अनुचित?
हिंदी के विकास के लिए मुझे तो अन्य भाषाओँ के शब्दों का प्रयोग क़तई खराब नहीं लगता है। इससे भाषा का विस्तार होगा उसकी पहुँच स्वीकार्यता बढ़ेगी।
10- आजकल नए लेखकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है आप क्या कहना चाहेंगे?
नए लेखक आ रहे हैं ये तो शुभ संकेत है। लगता है आदमी ने समाज के प्रति जिम्मेदारी को समझना शुरू कर दिया है लेकिन मैं कहना चाहूँगा कि जो भी लिखना चाहता है उसे खूब पढ़ना चाहिए जितना स्तरीय साहित्य आप पढ़ेंगे उतना ही अच्छा लिख सकेंगे।
11- आप पाठकों को क्या सन्देश देना चाहेंगे?
हर रचना का कोई न कोई विशिष्ट उद्देश्य होता है।इस किताब में मैंने अपने दिल के अहसास रखे हैं हर आदमी में कहीं न कहीं कमोबेश एक शायर छुपा रहता है उसके दिल का एक कोना निहायत मुलायम और रूमानी हुआ करता है।ये ग़ज़लें उसी कोने को छूएं इन्हें पढ़कर कोई अपना याद आये और होठों पर मुस्कान छा जाये या आँखों का कोई कोना गीला हो जाये तो रचनाएँ सार्थक समझूंगा।कहना चाहूँगा कि जिस्मानी प्रेम वक़्त के साथ ख़त्म हो जाता है रूहानी प्रेम कभी ख़त्म नहीं होता। सब से प्रेम करें दिलों को जीतने का प्रयास करें।यही जीवन की सार्थकता है। कहा भी है लफ़्ज़े मुहब्बत का इतना ही फ़साना है
सिमटे तो दिले आशिक़ फैले तो ज़माना है। हमारी मुहब्बत सारी जमीं तक फैले यही कामना है।
12- साहित्यापीडिया पब्लिकेशन से पुस्तक प्रकाशित करवाने का अनुभव कैसा रहा?आप अन्य लेखकों से क्या कहना चाहेंगे?
अनुभव अच्छा रहा है। कभी कभी लगता है लागत ज्यादा ली जाती है। फिर भी पुस्तक की छपाई सज्जा पन्नों का स्तर सब कुछ सराहनीय है। विश्व भर के ई स्टोर्स पर पुस्तक रखना विलक्षण अनुभव है। अमेजन फ्लिपकार्ट पर रखना अलग प्लस पॉइंट है। इतनी खूबसूरत पुस्तक के लिए शुक्रिया।