साक्षात्कार- मनीषा मंजरी- नि:शब्द (उपन्यास)
मनीषा मंजरी बिहार राज्य के एक छोटे से जिला दरभंगा से संबंध रखती हैं। इन्होने प्रारंभिक शिक्षा वहीं ग्रहण की और उच्च स्तरीय शिक्षा दिल्ली और बैंगलोर में की। मनीषा मंजरी मानवीय संवेदनाओं को शब्द रूप देने में माहिर हैं। इनके सहज और सरल व्यक्तित्व की छाप इनके लेखन में उभर कर आती है।
मनीषा मंजरी जी का नया उपन्यास, निःशब्द, प्रकाशित हो चुका है और पाठकों द्वारा बेहद पसंद किया जा रहा है। यह पुस्तक पेपरबैक एवं ईबुक के रूप में पूरे विश्व में उपलब्ध है। अधिक जानकारी के लिए इस लिंक पर क्लिक करें- Click here
आइये पढ़ते हैं इस पुस्तक से जुड़े कुछ ख़ास प्रश्नों के उत्तर, मनीषा मंजरी जी द्वारा।
1. अपनी पुस्तक नि:शब्द के बारे में कुछ बताएं। आपको इसे लिखने की प्रेरणा कैसे मिली? और आपने इसके शीर्षक का चुनाव कैसे किया?
मेरी बाकी पुस्तकों की भांति निःशब्द की कहानी भी मानवीय संवेदनाओं और मूल्यों पर आधारित है। जहां मेरी बाकी कहानियों में शब्दों की प्राथमिकता ज्यादा रही है, वहीं निःशब्द उन शब्दों का प्रतिरूप है, जिनमें खामोशियों में छुपी अनकही भावनाओं को कहा गया हो। निःशब्द की कहानी की मुख्य पात्र एक ऐसी बच्ची है, जिसके पास शब्द नहीं है। जिसने अपने बोलने की ताकत को खो दिया है। ये कहानी उसके अनकहे शब्दों, उसके शरीर पर दिखने वाले गहरे जख्मों और उसकी पहचान को ढूंढती है।
मुझे शुरू से हीं उन खामोशियों में ज्यादा दिलजस्पी रही है शब्दों के बीच आते हैं। मेरा मानना है की जो लोग कम बोलते हैं या नहीं बोल पाते वो आम लोगों से ज्यादा संवेदनशील होते हैं, क्यूंकि उनकी भावनाये कभी भी शब्दों का रूप नहीं ले पाती। अपनी तीसरी किताब पूर्ण होने के बाद मेरे मन में इसी मौन को कहानी रूप देने का विचार आया और वहीं से जन्म हुआ निःशब्द का।
इस कहानी के पूर्ण होने के बाद इसके लिए कई शीर्षक मेरे ज़हन में आये परन्तु हर शीर्षक में कुछ कमी सी लग रही थी, कुछ छूटा-छूटा सा था, फिर विचार आया की निःशब्द से बेहतर तो कुछ हो हीं नहीं सकता। इस एक शब्द में हीं सारी कहानी शीशे जैसी पारदर्शी दिखती है।
2. इससे पहले आपके 3 अंग्रेजी उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। यह आपकी हिंदी की पहली पुस्तक है। अंग्रेजी की तुलना में हिंदी में पुस्तक लिखने का आपका अनुभव कैसा रहा?
अंग्रेजी से हिंदी का सफर बहुत हीं मुश्किल और यूँ कहूँ तो बहुत हीं रोचक रहा। चूँकि मैं जहां से हूँ वहाँ अंग्रेजी के बजाये हिंदी मूल रूप से बोली जाती है, जब मेरी पहली किताब प्रकाशित हुई थी तभी से मुझपर पाठकगणों का एक विशेष दबाब रहा की उस किताब को हिंदी भाषा में उपलब्ध कराया जाए। शुरू शुरू में तो मैं एक वाक्य भी हिंदी में नहीं लिख पाती थी, पर साहित्य पीडिया के मंच और इनकी टीम ने इस सम्बन्ध में मेरी बहुत मदद की। सच कहूँ तो अगर मैं इस मंच से नहीं जुड़ती तो आप सब मुझे आज भी बस अंग्रजी लेख़क के रूप में हीं पहचानते। मुझे लगता है अंग्रेजी की तुलना में हिंदी हम युवाओं के लिए थोड़ी ज्यादा मुश्किल है। कभी-कभी भावनाएं रहते हुए भी शब्द नहीं मिलते थे और कभी-कभी शब्दों का चयन मुश्किल हुआ करता था।
3. आपने बेहद कम समय में साहित्य के क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान बनायी है। पिछले 1 वर्ष में आपके 4 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं। यह अपने आप में एक कीर्तिमान है। अपनी साहित्यिक यात्रा के बारे में कुछ बताएं।
साहित्य लेखन के क्षेत्र में भले मैंने थोड़ा समय हीं दिया है अभी तक, पर साहित्य की तरफ़ रुझान मेरा बचपन से रहा है। मैं आज भी एक लेखक से पहले एक पाठक हूँ। मैंने खुद को सदैव हीं किताबों के बीच रखा है। ये कहीं न कहीं उस पाठन का हीं असर है, जिसने आज मुझे एक लेखक के रूप में पहचान दिलवाई है। मैं वहीँ लिखती हूँ जो महसूस करती हूँ, और लेखन में निरंतरता बनाये रखतीं हूँ। जब मैंने लिखना शुरू किया था तब सोचा नहीं था की यहां तक आ पाउंगी, पर अब लगता है शायद यही मेरी नियति थी।
4. आपकी सभी पुस्तकें गंभीर विषयों पर होने के बावजूद बेहद रोचक होती हैं। आप अपनी कहानियों में यह सामजस्य कैसे बिठा पाती हैं?
मेरी कहानियां सिर्फ कहानियां नहीं होती बल्कि ये परिदृश्य होता है, हमारे आस-पास का। मैं वही लिखने की कोशिश करती हूँ जो हमारे आस-पास में घटित हो रहा हो और उस परिस्थिति को कैसे हम सही तरह से समझ सकते हैं। हमारे आस-पास में ऐसा बहुत कुछ होता है, जिसे हम बदलना तो चाहते हैं पर कुछ कर नहीं पाते बस मौन होकर उस परिस्थिति को स्वीकार कर लेते हैं। मैं अपनी कहानियों के द्वारा उन्हीं अनसुलझी गांठों की तरफ पाठकों का ध्यान आकर्षित करने की चेष्टा करती हूँ। यदि सीधे तरीके से हर पहलु को छुआ जाए तो हम शायद कुछ भी ना बदल पाएं परन्तु कहानी को रोचक बना कर हम संवेदनशील तथ्यों को भी सबके सामने ला पाते हैं। मैं अपनी कहानियों के माध्यम से यही करने की कोशिश कर रहीं हूँ। यदि मेरी कहानियां किसी एक इंसान को भी जागरूक कर पायी तो मुझे लगेगा की मेरा लिखना सार्थक है।
5. नए उभरते लेखकों के लिए आप एक प्रेरणा हैं। क्या आप उन्हें कोई सन्देश देना चाहती हैं?
नए लेखकों को मैं बस इतना कहना चाहूंगी की ईमानदारी से और दिल से लिखें, दिल से लिखी बातें पाठकों के दिल को जरूर छूएंगी।
6. इस पुस्तक के प्रकाशन का आपका अनुभव कैसा रहा?
पुस्तक प्रकाशन का मेरा अनुभव बहुत हीं सुन्दर और सरल रहा क्यूंकि मुझे एक अच्छे प्रकाशन का साथ प्राप्त हो सका। अब तक की मेरी सारी किताबें साहित्य पीडिया द्वारा हीं प्रकाशित हुईं हैं। मुझे बस अपनी मनुस्क्रिप्ट सांझा करनी होती है उसके बाद मैं अपने आगे के लेखन में लग जाती हूँ। इस मंच ने मुझे आज एक उपन्यासकार बनाया है, और मुझे ख़ुशी है की मैंने अपने पुस्तकों के प्रकाशन के लिए साहित्य पीडिया पब्लिशिंग को चुना।