साक्षात्कार- चन्दर मोहन ‘चन्दर’- लेखक, आपकी नज़र (काव्य संग्रह)
चन्दर मोहन ‘चन्दर’ जी की पुस्तक “आपकी नज़र (काव्य संग्रह)” हाल ही में साहित्यपीडिया पब्लिशिंग द्वारा प्रकाशित हुई है| यह पुस्तक विश्व भर के ई-स्टोर्स पर उपलब्ध है| आप उसे यहाँ दिए गए लिंक पर जाकर प्राप्त कर सकते हैं- Click here
1) आपका परिचय?
मेरा नाम चन्दर मोहन शर्मा है…और पंजाब के जिला रोपड़ में नंगल टाउन शिप में एक मध्यमवर्गीय परिवार में पला बड़ा हूँ… मेरे जन्म स्थान से 7kms पे ही मशहूर भाखड़ा बाँध है… बचपन की यादें जब उन गलियों में ले जाती हैं तो आनंद विभोर हो जाता हूँ…
2)आपको लेखन की प्रेरणा कब और कहाँ से मिली? आप कब से लेखन कार्य में संलग्न हैं?
वैसे तो यदा कदा मैं यूं ही लिखा करता था जो मन में आया, जैसे कोई शेर या चार पंक्तियाँ पर संभाल के नहीं रखता था ऐसे ही लिख के छोड़ देता था, कभी ऑफिस में बैठा यूं ही…एक दिन मेरे एक मित्र को मेरे एक दो शेर मिल गए तो उसने उसको ले के ग़ज़ल लिख डाली…बोलै तुम भी लिखा करो…किसी भी विधा में लिखो पर लिखो ज़रूर….हाँ जो संजीदगी से लिखने का काम शुरू किया वो कुछ ३-४ वर्ष पूर्व किया…
3) आप अपने लेखन की विधा के बारे में कुछ बतायें?
विधा कोई भी हो भाव उसमें प्रबल होना चाहिए…भाव दूसरों के मन तक नहीं पहुंचे तो विधा का मतलब नहीं रहता…मैं काव्य की किसी भी विधा में बंधना नहीं चाहता…हाँ ग़ज़ल मुझे बहुत प्रिय है २५-३० वर्ष से ग़ज़ल्स सुन रहा हूँ …मेरे सबसे प्रिय गायकों में स्वर्गीय जगजीत सिंह जी…मेहदी हसन साहिब हैं…मेरे इस काव्य संग्रह में भी किसी एक विधा के ऊपर रचना नहीं है मेरी….इसमें भक्ति भाव हैं…ग़ज़ल/गीतिका है… कविता है…छंद….बाल गीत भी है…और त्रिवेणी विधा के ऊपर भी रचना है…किसी एक विधा में बंधी नहीं रचनाएं मेरी…
4) आपको कैसा साहित्य पढ़ने का शौक है? कौन से लेखक और किताबें आपको विशेष पसंद हैं?
बहुत ज्यादा साहित्य मैंने नहीं पढ़ा है…जैसे जैसे वक़्त मिला और जो भी अच्छा मन को लगा पढ़ा…श्री गीता जी, श्री रामायण जी बचपन में घर में पढ़े जाते रहे हैं…गीता प्रेस गोरखपुर से ‘कल्याण’ मैगज़ीन निकलता वो पढता रहा हूँ…प्रेमचंदजी…रामधारी सिंह दिनकर…महादेवी वर्माजी…रसखान जी…मीराजी…सूरदासजी…आदि आदि सब आत्मा को छूते हैं…
5) आपकी कितनी किताबें आ चुकी है?
ये मेरी पहली ही किताब है….
6) प्रस्तुत संग्रह के बारे में आप क्या कहना चाहेंगे?
जैसा की पहले भी कहा है मैंने…जो चेतन…अवचेतन मन में मेरे उभरता है…वो अपनी ज़िन्दगी से जुडा हो या आस पास हो रहा हो…उसको भावों में ढालने की कोशिश करता हूँ….जड़ चेतन सबसे प्रभावित हुआ हूँ और आप देखेंगे की इसमें ऐसा ही कुछ समावेश है…मानसिक उद्विग्नता…बेबसी…. मन पखेरू कहाँ कहाँ ले जाता है…समय से भी परे…सबसे अलग… ऐसे ही कुछ भावों का रोपण है…
7) ये कहा जा रहा है कि आजकल साहित्य का स्तर गिरता जा रहा है। इस बारे में आपका क्या कहना है?
स्तर तो इंसान का गिर रहा है…साहित्य क्या हर क्षेत्र उसका प्रतिबिम्ब मात्र है…हम अगर अपने स्तर को उठा लें तो हर क्षेत्र में स्तर उठ जाएगा…नकारने लगेंगे जब स्तरहीन विचारधाराओं को तो स्तर उठेगा ही……
8) साहित्य के क्षेत्र में मीडिया और इंटरनेट की भूमिका आप कैसी मानते है?
बहुत बड़ी भूमिका है…अगर सही को सही और गलत को गलत कहेंगे तो सकारात्मक परिवर्तन होगा ही…और अगर गलत चीज़ को बार बार दिखाएंगे या बोलेंगे तो नकारात्मक प्रभाव बढ़ेगा जिस से समाज दिशाविहीन हो सकता है…इस लिए मीडिया…इंटरनेट कोई भी माध्यम हो गलत को गलत कहने का साहस होना चाहिए अगर सही में हम अपना कर्तव्य का निर्वहन करना चाहते हैं….
9) हिंदी भाषा मे अन्य भाषाओं के शब्दों के प्रयोग को आप उचित मानते हैं या अनुचित?
जो बोल चाल की भाषा के शब्द हैं उनको शामिल करने में आपत्ति नहीं है…जब तक हम हिंदी के कठिन शब्दों की जगह आसानी से बोले जाने वाले शब्द नहीं प्रयोग करते हिंदी वो स्थान नहीं पा सकती जैसे ‘लौहपथ गामिनी’ का भाव हर कोई नहीं समझेगा….हाँ ट्रेन समझ जाएगा अनपढ़ भी…मेरा कहने का ये कतई मतलब नहीं की हिंदी के ऊपर और शब्द थोपे जाएँ हाँ ऐसा मिश्रण हो तो हिंदी और अधिक प्रभावी और विस्तार ग्रहण करेगी…जैसे की इंग्लिश…इंग्लिश ने अपने में जब तक दुसरे देशों के शब्दों को ग्रहण नहीं किया वो भाषा अपने देश में भी नकारी जाती रही है…
10) आजकल नए लेखकों की संख्या में अतिशय बढ़ोतरी हो रही है। आप उनके बारे में क्या कहना चाहेंगे?
अच्छा है जितने लेखक आएंगे उतना ज्यादा आदान प्रदान होगा भावों का विचारों का….इसमें बुरा कुछ भी नहीं है…हाँ लिखने में फूहड़पन और भौंडापन नहीं होना चाहिए…बस…
11) अपने पाठकों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
यही की खूब पढ़िए…जैसे हम और काम करते हैं पढ़ने को भी हम आदत में डालें…जब तक पढ़ेंगे नहीं दिमाग नहीं खुलेगा…और उसपे अपने विचार भी दीजिये…अच्छा लगे या बुरा…जो लगे वही दीजिये.. इस से अच्छा लिखने के प्रेरणा मिलती है… और समय मिले तो खुद भी लिखिये…अपने विचारों को बहने दीजिये…एक दिन वो सरिता की तरह कल कल भीतर करेंगे…आनंद देंगे….
12) साहित्यपीडिया पब्लिशिंग से पुस्तक प्रकाशित करवाने का अनुभव कैसा रहा? आप अन्य लेखकों से इस संदर्भ में क्या कहना चाहेंगे?
पहली पुस्तक ही है मेरी…और अनुभव भी बहुत सुहाना सा है…और जो भी काम पहली दफा किया जाए…वो हमेशा याद रहता है….और ये तो बहुत ही मीठी शुरुआत है…पहले प्यार की तरह पब्लिकेशन की शुरुआत भी सारी ज़िन्दगी के लिए दिल और दिमाग में बसी रहेगी…सभी को आमंत्रण देता हूँ…आइए लेखन कार्य से जुड़िये साहित्यपीडिआ पब्लिशिंग के साथ….