साकार दर्शन
छंद:- लावणी छंद आधारित गीत
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【रचना】
खलक में जीवन वक्ष स्पन्दन, सब उसकी ही माया है।
जल में थल में अनल – वायु में, सब में वही समाया है।
वेद पुराणों ने भी माना, कण – कण में वह वास करें।
जीवों में जीवात्मा बनकर, जन जीवन में श्वास भरे।।
व्यापक अरु सर्वज्ञ वही है, जग उसकी ही छाया है।
जल में थल में अनल – वायु में, सब में वहीं समाया है।।
जब – जब होती हानि धर्म की, अवतारी बन जाता है।
दुष्ट-दलन कर ईश्वर तब ही, धर्म ध्वजा फहराता है।।
रूप अलौकिक जग से न्यारा, भव स्वरूप वह काया है।
जल में थल में अनल – वायु में, सब में वही समाया है।।
पापाचार बढ़ा वसुधा पर, ईश्वर ने अवतार लिया।
राम, कृष्ण, बामन स्वरूप में, धर्म युक्त व्यवहार किया।।
पंचभूत वह ही परमेश्वर, बाकी सब प्रतिछाया है।
जल में थल में अनल – वायु में, सब में वही समाया है।।
लाज बची जब चीर बढ़ाया, भ्राता सम वह प्यार दिया।
राम – कृष्ण बनकर भगवन ने, सगुण रूप साकार किया।।
सर्वेश्वर, ईश्वर की महिमा, हमे समझ अब आया है।
जल में थल में अनल – वायु में, सब में वहीं समाया है।।
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【पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’】