Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Jun 2022 · 2 min read

#साइकिल_का_वह_दौर

#विश्व_साइकिल_दिवस #3_जून
संस्मरण*
#साइकिल_का_वह_दौर
————————————————————
साइकिल चलाना हमने सात-आठ साल की उम्र में सीखी होगी । किले के पश्चिमी दरवाजे जिसका नाम हामिद गेट है ,के ठीक सामने एक दुकान थी, जिस पर छोटे बच्चों के चलाने के लिए दो पहियों की साइकिल मिला करती थी। किराया प्रति घंटा के हिसाब से जाता था । घंटे – दो घंटे के लिए सुबह के समय बच्चे वहाँ से साइकिल उठा लेते थे और किले के अंदर घूम-घूम कर साइकिल चलाते हुए वापस आ जाते थे ।
वैसे तो बच्चे धीरे-धीरे ही साइकिल चलाते थे लेकिन कई बार आपस में रेस भी लग जाती थी । लेकिन कोई विशेष टक्कर या गिरने पर चोट की घटना किसी के साथ हुई हो ,ऐसा मुझे याद नहीं आता ।
दुकान पर काफी साइकिले थीं। कम से कम इतनी तो थी हीं कि किसी बच्चे को साइकिल मिलने में कोई दिक्कत नहीं आई । न कोई नाम-पता पूछा जाता था और न सिक्योरिटी की कोई रकम जमा कराई जाती थी । कोई समस्या या झगड़ा कभी बच्चों का दुकानदार से नहीं हुआ । बचपन में सीखी हुई वह साइकिल आनंदित करती थी ।
किले में जहाँ पैदल घूमने का अपना मजा आता था, वहीं साइकिल चलाने का आनंद भी कुछ और ही था । स्कूटर या बाइकें उस जमाने में कभी-कभार किसी की देखने में आ जाती होंगी अन्यथा लोग या तो पैदल चलते थे या साइकिल चलाते थे। ताँगे और बैलगाड़ी आमतौर पर शहर की सड़कों पर दिख जाया करते थे । ताँगे खड़े होने का एक अड्डा रहता था ,जो किले के पास ही था।
जब हम डिग्री कॉलेज में आए ,तब साइकिल खरीदी गई और डिग्री कॉलेज आने-जाने के लिए साइकिल का इस्तेमाल होने लगा । इंटर तक स्कूल पास में था इसलिए पैदल पर्याप्त था । डिग्री कॉलेज में शायद एक भी बच्चा स्कूटर से नहीं आता था । सभी लड़के साइकिलों से ही आते थे।
साइकिल चलाने में न कोई शान घटती थी ,न शान बढ़ती थी । साइकिल चलाना एक साधारण – सी बात थी । सभी लोग चलाते थे । इसे शारीरिक व्यायाम के तौर पर भी हमने कभी नहीं समझा । हालाँकि जब दुनिया साइकिल की बजाए स्कूटर, स्कूटी और बाइक की तरफ चली गई ,तब यह विचार सामने आया कि साइकिल चलाने से सेहत बनती है ।
कालांतर में साइकिल का चलन धीरे-धीरे कम होता चला गया । स्कूटर और बाइक आम सवारी में गिने जाने लगे। डिग्री कॉलेज के छात्रों की तो बात ही क्या ,हाईस्कूल और इंटर के विद्यार्थी भी साइकिल पर चलना अब हीनता के भाव से जोड़ेंगे।
साइकिल का रखरखाव बहुत सस्ता रहता है । बस ,हवा भरवा ली जाती है और कभी कभार पंक्चर हुआ तो वह जुड़वा लिया जाता है । मजे से शहर के भीतर साइकिल से घुमा जा सकता है ।
———————————————————————–
_लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451_

Language: Hindi
270 Views
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

सत्य और राम
सत्य और राम
Dr. Vaishali Verma
गहराई.
गहराई.
Heera S
चाह
चाह
Dr. Rajeev Jain
#विदा की वेला
#विदा की वेला
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
मेरी अनलिखी कविताएं
मेरी अनलिखी कविताएं
Arun Prasad
"नया साल में"
Dr. Kishan tandon kranti
ज़िंदगी का दस्तूर
ज़िंदगी का दस्तूर
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
एक रिश्ता शुरू हुआ और तेरी मेरी कहानी बनी
एक रिश्ता शुरू हुआ और तेरी मेरी कहानी बनी
Rekha khichi
उसकी सूरत में उलझे हैं नैना मेरे।
उसकी सूरत में उलझे हैं नैना मेरे।
Madhuri mahakash
प्यार पे लुट जाती है ....
प्यार पे लुट जाती है ....
sushil sarna
जिंदगी
जिंदगी
meenu yadav
#डॉ अरूण कुमार शास्त्री
#डॉ अरूण कुमार शास्त्री
DR ARUN KUMAR SHASTRI
मन को भिगो दे
मन को भिगो दे
हिमांशु Kulshrestha
शुभ होली
शुभ होली
Dr Archana Gupta
आँखों की कुछ तो नमी से डरते हैं
आँखों की कुछ तो नमी से डरते हैं
अंसार एटवी
श्री राम।
श्री राम।
Abhishek Soni
#प्रणय_गीत:-
#प्रणय_गीत:-
*प्रणय*
सम्भाला था
सम्भाला था
भरत कुमार सोलंकी
इसलिए कहता हूं तुम किताब पढ़ो ताकि
इसलिए कहता हूं तुम किताब पढ़ो ताकि
Ranjeet kumar patre
थकावट दूर करने की सबसे बड़ी दवा चेहरे पर खिली मुस्कुराहट है।
थकावट दूर करने की सबसे बड़ी दवा चेहरे पर खिली मुस्कुराहट है।
Rj Anand Prajapati
कुछ नहीं बचेगा
कुछ नहीं बचेगा
Akash Agam
धिन हैं बायण मात ने, धिन हैं गढ़ चित्तौड़।
धिन हैं बायण मात ने, धिन हैं गढ़ चित्तौड़।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
गीत- न देखूँ तो मुझे देखे...
गीत- न देखूँ तो मुझे देखे...
आर.एस. 'प्रीतम'
3849.💐 *पूर्णिका* 💐
3849.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
प्रेम
प्रेम
Neha
छम-छम वर्षा
छम-छम वर्षा
surenderpal vaidya
*मैं और मेरी तन्हाई*
*मैं और मेरी तन्हाई*
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
*हिम्मत जिंदगी की*
*हिम्मत जिंदगी की*
Naushaba Suriya
मैं उसको जब पीने लगता मेरे गम वो पी जाती है
मैं उसको जब पीने लगता मेरे गम वो पी जाती है
डॉ. दीपक बवेजा
जिन्दा हूं जीने का शौक रखती हूँ
जिन्दा हूं जीने का शौक रखती हूँ
Ritu Asooja
Loading...