सांसे कम है मेरे पास
तुम आओ इतना करीब कि मैं महक जाऊं,
तेरी आग़ोश में आकर मैं बहक जाऊं।
मैं जब दूर हो जाऊंगी तुझसे,
मेरे साथ बिताए शाम ,तू सोच कर मंद मंद मुस्काएगा।
दो पल की मेरी जिंदगी ऐ मेरे हमराज ,
आओ जी ले खिलखिला के ये शाम।
बड़ा सुकून मिलता है ,तेरी आग़ोश में आकर।
मैं भूल जाती हूं, अपनी हर दर्द मुस्कुरा कर।
बड़े राज बयां, करना चाहती हैं “शुचि” तुझसे आज।
लगता है ,छोटी पड़ जाएगी ये रात।
तुझे छोड़कर ,जाने को जी नहीं चाहता।
पर क्या करूं ,सांसे कम है मेरे पास।
पर क्या करूं सांसे कम है मेरे पास।
डॉ माधवी मिश्रा “शुचि”
सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश