सांसें हैं बहकी बहकी
गुल बाग में महके महके
सांसें भी हैं बहकी बहकी
जल रहा है यहाँ तनबदन
अंग प्रत्यंग दहकी दहकी
मचल रहा है मृदुल हृदय
धड़कनें हैं अटकी अटकी
मच रहा दिल प्रेम अग्न में
भावनाएँ हैं मचली मचली
यह प्यार का वज्रपात हैं
प्रेम उमंगें भड़की भड़की
श्वेत हिम सा सच्चा प्रेम हैं
कामनाएँ भी तरसी तरसी
मदहोश हूँ ना होशोहवास
आँखें अश्रु में भीगी भीगी
प्रेमरंग का देखो यह असर
आँखें नींद में जगती जगती
नवयौवन से तन भरा भरा
वासनाएँ हैं भड़की भड़की
प्रीतम से कब होगा मिलन
जीवन सांसे भी रुकी रुकी
गुल बाग में महके महके
सांसे भी हैं बहकी बहकी
सुखविंद्र सिंह मनसीरत