सांसारिक मृग मारीचिका
सांसारिक मृग मरीचिकाओं में मन
फिरता मारा मारा
अंतहीन प्यास में भटक रहा
अतृप्त जीव बेचारा
कामनाओं की प्यास असीमित
जीवन में बढ़ती जाती है
पूरी होती एक नहीं
दूजी पहले आ जाती है
सांसारिक मृग मारीचका
जीव को जीवन भर भटकाती है
भ्रम में दौड़ा-दौड़ा एक दिन
प्यासा ही ले जाती है
भरी दुपहरी में जैंसे
मृग को पानी दिखता है
जीव को भी सांसारिक सुख
मृग जैंसा भटकाता है
दौड़ दौड़ कर जीव भी एक दिन
प्यासा जग से जाता है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी