सांझ भई
सांझ भई पंछी घर आये ।
निरख नीड़ में शिशु हर्षाये ।।
मीठी मधुर मोदमय बोली ,
अंतर्मन के प्रेम की झोली ।
प्रिय प्रवाह से जैंसे खोली,
सप्त रंग मय सी रंगोली ।।
कोमल कुसुम पंख वर्षाये ।
सांझ भई पंछी घर आये ।।
दाना लेने की व्याकुलता,
वात्सल्य की है आकुलता ।
नेह नीर की भरी मृदुलता,
प्रतीक्षा की यही सफलता ।।
चोंच फेर मस्तक सहलाये ।
सांझ भई पंछी घर आये ।।
सूनेपन के बीहड़ वन में,
आशा दीप जले हैं मन में ।
प्राण जगे छोटे से तन में,
जैंसे चाँद छिपा हो घन में।।
मन्द पवन ने हिय सरसाये ।
सांझ भई पंछी घर आये ।।