साँस बनने पर तुली है अब शरारा देखना
———-ग़ज़ल——-
तितलियों का बाग में ग़र तुम नज़ारा देखना
हो न जाये इस मुहब्बत में ख़सारा देखना
आशियाने जो बनाते हो यहाँ ख़्वाबों के तुम
आँधियाँ आयें न बादल का इशारा देखना
वस्ल की आतिश में जलता है बदन दिन- रात ये
साँस बनने पर तुली है अब शरारा देखना
दौरे हाज़िर में है मिलता ये सिला बस प्यार में
जिसने की उल्फ़त फिरे वो मारा-मारा देखना
दीद से जिसके है आयी चेहरे पे रौनक़ मेरे
चाहता है दिल उसी को फिर दुबारा देखना
बेसहारा ख़ुद को ग़र महसूस करना तुम कभी
तो किसी मज़लूम का बनकर सहारा देखना
फिर पलट आया वबा प्रीतम हमारे मुल्क़ में
किस तरह होगा सभी का अब गुज़ारा देखना
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्ती (उ०प्र०)