साँस घुटती है
साँस घुटती है इन जहरीली हवाओं में, सपनों की दुनिया खो गई है अंधेरों में। पेड़ों की छाँव अब कहाँ है, कहाँ हैं वो फूल, मन में बसती है अब यादों की धूल।
चाँदनी रातें भी अब डराती हैं हमें, सितारों की चमक भी अब बुझती है ऐसे। शहर की बत्तियाँ तो जगमग हैं मगर, दिल के उजालों में ढूँढते हैं राहत के पल।
धरती की गोद में अब जहर है बसा, आसमान भी लगता है जैसे अब है उदास। बारिश की बूंदें अब सुखाती नहीं, दिल की धड़कनें भी अब रुकने सी लगीं।
आओ, मिलकर फिर से उम्मीद जगाएँ, इन जहरीली हवाओं से जंग करें हम। हरियाली की चादर फिर से बिछाएँ, नए सवेरे की ओर चलें हम।
रखें दिलों में प्यार और उम्मीद की लौ, साँसों में फिर से भरें ताजगी का रंग। प्रकृति का मान रखें, हरियाली का सम्मान, साँसें फिर से महक उठें, जीवन बने आसान।
प्रो. स्मिता शंकर
सहायक प्राध्यापक ,हिन्दी विभाग
बेंगलुरु-560045