साँसों के द्वारा यात्रा संभव है
साँस, शरीर और आत्मा दोनों को बांधे रखने वाला धागा है। जब तक साँस है तब तक शरीर और आत्मा एकदूसरे से अलग नहीं हो सकते। जैसे ही साँस टूटती है वैसे ही शरीर और आत्मा दोनों अलग हो जाते हैं।
इसलिए साँस का नियंत्रण मनुष्य के पास नहीं बल्कि वह तो लगातार चलती रहती है, इसलिए कभी नहीं सुना कि किसी ने साँस रोककर आत्महत्या की है। जबकि साँस रोककर आत्महत्या करने के लिए किसी भी उपाय की, तकनीकी की या साधन की जरूरत नहीं, जब चाहो जहाँ चाहो आसानी से कर सकते हो किंतु ऐसा कोई भी नहीं कर पाता क्योकि साँस हमारे नियंत्रण से बाहर है। जबकि कोई भी व्यक्ति आत्महत्या करता है उसमें वह यंत्रों द्वारा साधनों द्वारा साँसों को ही रोकता है, जैसे फांसी लगाना, जहर खाना इत्यादि। इसलिए साँसे हर समय चलती रहती हैं जागते हुए, सोते हुए, वेहोशी की हालत में भी।
साँस ही शरीर को आत्मा से जोड़ती है, साँस ही शरीर को समाज से और फिर पूरे विस्व से जोड़ती है। क्योकि साँस है तो व्यक्ति जिंदा और जिंदा व्यक्ति ही किसी समाज का देश का और विस्व का हिस्सा हो सकता है ना कि मृत व्यक्ति।
साँस रस्सी की भाँति है जिसका एक छोर इस लोक से जुड़ा रहता है तो दूसरा छोर परलोक से जुड़ा रहता है। अर्थात शरीर इसलोक का हिस्सा है तो आत्मा परलोक का हिस्सा है, जिन दोनों हिस्सों को साँस ने बाँधे रखा है। दूसरे शब्दों में कहें तो साँस के एक छोर को इंसान ने पकड़ रखा है तो दूसरे छोर को परमात्मा ने। शायद यही कारण है कि साँस सर्वसुलभ है किसी का इसपर कोई पहरा नहीं। व्यक्ति को कभी भी साँस रोकने का दंड नहीं दिया जा सकता है जेल में डाला जा सकता है, कालापानी की सजा दी जा सकती है किंतु साँस ना लेने का दंड नहीं दिया जा सकता। हाँ मारा जा सकता है किंतु दण्ड स्वरूप मारना व्यक्ति की विवशता , हार, असफलता और निर्वलता को दर्शाता है ना कि शक्ति को।
शायद ही किसी भी धर्म के शास्त्रीय प्रमाण या कहानी हो जिसमें किसी देवता या राक्षस ने सभी मनुष्यों की साँसे रोक ली हों क्योकि ऐसा हो ही नहीं सकता। शास्त्र लिखने वाले समझते थे कि ऐसे शक्तिशाली देवता या दानव की परिकल्पना करना ही मुश्किल है जो लोगों की साँसों को रोक लेता हो क्योकि ऐसा कभी हो ही नही सकता। अगर ऐसा किया तो उनके परमात्मा के अस्तित्व पर ही संकट आ जाएगा कि ऐसा भी दानव हो सकता है जो साँसों को रोक ले अर्थात वह दानव या तो परमात्मा के बराबर शक्ति का होगा या फिर उससे भी ज्यादा शक्तिशाली। इसलिए धर्म शास्त्रियों ने कभी भी ऐसा जोखिम मोल नहीं लिया जो उनके बनाए को ही उनके खिलाफ कर दे।
इसलिए व्यक्ति चाहे जिस भी धर्म का हो, जाति का हो, क्षेत्र का हो या समुदाय विशेष का हो उसे इहलोक से परलोक की यात्रा करनी है तो साँस की रस्सी को पकड़कर ही आगे बढ़ना होगा। और सबसे बड़ी बात यह कि शरीर के साथ अर्थात सशरीर ही प्रयोग करना होगा ना कि शरीर और आत्मा को अलग करके या मृत्यु के बाद।
प्रशांत सोलंकी
नई दिल्ली-07