साँझ ढले जिया रोवे रे सखी री
साँझ ढले जिया रोवे रे सखी री
दीप नहीं हिया बाले रे सखी री
साँझ ढले…….
गाये पपीहा, कूके तन में कोयलिया
मन में बजाए मोरे श्याम बांसुरिया
गीत नहीं बिरह गाये रे सखी री
साँझ ढले…….
राधा ने काहे अपनी चुराई नजरिया
रूठी जो कान्हा से तो छिपाई मुरलिया
प्रीत नहीं निभा पाये रे सखी री
साँझ ढले…….
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