साँझ ढले ही आ बसा, पलकों में अज्ञात। साँझ ढले ही आ बसा, पलकों में अज्ञात। छवियाँ अनगिन आँकते, कटी नयन में रात।। © सीमा अग्रवाल मुरादाबाद