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14 Jul 2020 · 1 min read

स़ब्र

ज़िंदगी के सफर में हम ख़रामां ख़रामां चलते गए।
राह में कुछ ग़म मिले सहते गए कुछ खुशियां मिली बांटते गए।
दोस्ती की कुछ वफ़ाऐं मिली तो फ़रेबे दुश्म़नी की कुछ जफ़ाऐं मिली सब का श़ुक्र अ़दा करते गए।
हुस्ऩ की कुछ राऩाईयाँ मिली तो इश्क़ की कुछ गहऱाईयाँ मिली उन सब में हम डूबते गए।
अपनों से कभी बेरुख़ी मिली तो गैरों से कभी हम़दर्दी मिली जिनके हम ए़हसानमंद होते गए।
ज़िंदगी की धूप और छांव की इस कशमकश में ज़िंदगी गुज़ारते गए।
तक़दीर से कोई ग़िला नहीं था ,
उसे ख़ुदा की नेमत माना जो कुछ मिला था,
शायद यही ज़िंदगी का स़िला था ,
ये स़ब्र थामकर कर चलते गए चलते गए।

Language: Hindi
13 Likes · 20 Comments · 328 Views
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