सहेलियाँ
मेरी कलम से…
friendship day special
* बचपन वाली सहेलिया*
दिन बीते, समय गये..
बचपन गये, बचपने गये..
गई हँसी और ठिठौलीयाँ सारी…
संगी गये ,साथी गये…
बस यादों मे रह गयीं सहेलियां सारी…
सुबह घर से जो निकले साईकिल ?लिये तो मंजिल स्कूल ??को जाती थी…
हो जाऐ जो सहेली तू बीमार तो अपनी भी स्कूल से छुट्टी हो जाती थी…
तेरी साईकिल का वो कैरीयल आज भी याद आता है…
बैठ कर पीछे तेरे संग,लगे मानो शहर पर सारा राज हमारा है…।
क्लास रुम का वो कमरा,? यादो मे गोते लगता है..
???? बैंच के लिये जो होती लडाई दिल मन ही मन मुस्कुराता है…
वो भी दिन क्या दिन थे ..
न किसी बात की फिक्र न समाज की चिन्ता सताती थी..
मस्त मौला रहते थे सब…
पढाई की बात बस पढाई मे रह जाती थी..
पास फेल का मतलब तो अब असल जिंदगी ने सिखाया है..
आज बिछडी जो सब सहेलियाँ ..
तो जिम्मेदारियों ने सब पर अपना कब्जा जमाया है…
कभी एक दिन भी बात कियें बिना नहीं रह पाती थी जो ..
आज सामने मिलने पर अपनी पहचान बताती है…
फिर से जी ले पूराने पलो को…
जाने कितने प्लान बनाती है..
पर समय का पहीया कहाँ रुकता है…
नारी का एक रूप सहेली सबकी किस्मत मे मिलकर बिछडना ही लिखा है..
बीते दोस्त, बीती यारी..
बस यादो मे रह गई सहेलियाँ सारी…
✍️✍️अमृता तिवारी