सही सलामत
कितने हुए क़त्ल, कितने हुए लहू – लुहान
कितने क़ी आबरू बची, कितने हुए हल्कान.
कितने जेल गए, कितने कटघरे मे खड़े
ल -दो के फेर में, अ -ब हो रहे बलिदान.
अब मत सुनाओं, चैनल वालों असमत क़ी बात
छिना -छोड़ी, छेड़खानी, रेप मर्डर से भरे है कान.
किस पर करें भरोसा, किस पर करें वे यकीन
हर रिस्ता रिसता है, कब कहाँ कैसे खो दे ईमान?
कतरा -कतरा खून बह जाता है यहाँ नाहक में
अमन के दुश्मनों से, लेता नहीं कोई यहाँ संज्ञान.
मर गई है इंसानियत, मंजर देखते है हर कोई
किसी को नहीं है फुर्सत, बघारते है केवल ज्ञान.
अब देश कैसे बचेगा? जब हम ही नहीं इसे बचाएंगे
देश केवल जमीन नहीं, साथ है जन -धन, जी -जान.
किसी ने लाया है तूफान से किस्ती निकालकर
जान अपना जोखिम में डालकर जरा पहचान.
पीढ़ियां बदलती है, सरकारें भी बदलती है यहाँ
सही – सलामत रखें गौरव, स्वदेश का अभिमान.
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@रचना – घनश्याम पोद्दार
मुंगेर