सही दिशा में
लोहा आग में तापकर ;
लोहार कि मार –
बनाता है मनोहर ,
इन्सान से होता है ;
इन्सानियत बढ़कर ,
जीवन की बेला ;
देख लो सच्चाई कि –
पथ में चलकर ;
खुद को पा के अकेला !
भटक ना जायें ! तेरा पथ –
थाम ले गुरु का हाथ !
चल ले दो कदम गुरु के साथ ,
सोना बन के चमकना,
माटी बनकर ;
कुम्हार के हाथों में सजकर ,
खुद को आग में तापाकर ;
बेला है तेरे हाथ में –
सुधार जाओं सही दिशा में चलकर ।
चारु कर हिना को ;
शिला में घिसकर ,
जीवन को सँवर लो.!
थोड़ा पसीना बहाकर ,
बनाने वाले जग को –
अद्भुत बनाया है ;
काँटें वाली डाली पे –
पुष्प को खिलाया है ,
पुष्प खुशबू को छुपाकर –
फिर महकया है ;
भटक ना जायें – तेरा पथ !
जगा ले उस शक्ति को –
तू ने जो ! तेरी अन्तर् में छिपाया है !
गुजर ले जीवन के दो पल ;
सच्चाई के साथ ।
नव तैर रहा है ;
अत्रु की सागर में ,
मसल गया सपनों की पुष्प ;
मत होना निराशा ;
मनस्थ हो अभिलाषा ,
बेला ने मारा ;
कौन देगा सहारा ;
परछाई भी होता विलुप्त !
सृष्टि जब तिमिर में लिप्त ,
मत डर निशा में !
चल तू सही दिशा में ,
आने वाला है ! कोई पूरब दिशा में ।
बेला है अनमोल ;
तेरा मर्जी ! तेरे कर्म में तोल ,
तू क्यों ! किस कारण ऐंठा है ?
पल – पल निकल गया !
व्यर्थ में क्यों ! तू बैठा है ?
सुन भाई – तेरा भविष्य !
वर्तमान की गर्भ में बैठा है ;
चल उठ –
इसे है अब गढ़ना ;
नहीं तो ! बाद में पछतावा होगा वरना ।
ठोकर खा के ही –
सम्हाल जाना है ;
गिरके ही –
खड़ा होकर आगे बढ़ना है ;
सँघर्ष तेरा जीवन है ;
हार ना मानना है ,
तुझे आगे ही बढ़ना है ,
सँघर्ष से हो कर्म फल अवँछित ;
काटोगे अब पुलकित ;
सोच समझकर फसल तुझे बोना है !
फैले तेरा समृद्धि दसों दिशा में ;
सच्चाई के साथ चल तू सही दिशा में ।
लेखक / कवि
रतन किर्तनिया
छत्तीसगढ़
जिला :- काँकेर
पखांजुर
मो * 9343698231
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