सहिष्णुता भारत के रग रग में
सहिष्णुता भारत के रग रग में-
चार वर्ष पूर्व यह शब्द बडी तेजी से उछला आखिर भारत इतना असहिष्णु(इंटोलरेंश) हो गया है । यह पूणतः काल्पनिक मनगढंत तथा बुद्धिजीवी वर्ग का राजनैतिक सोच पूर्वाग्रह से प्रेरित शब्द था। यही असहिष्णुता शब्द 10 दिनों पूर्व पुनः जीवित करने का प्रयास किया जाने लगा। इसी बीच राम मंदिर का फैसला सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुना दिया गया ।
इस फैसले की सभी मत सम्प्रदाय मजहब के लोगों ने बडे ही सहजता से लिया। सभी ने एक स्वर में मिलजुलकर बात दोहरायी हमे आपसी भाईचारे को बनाकर रखना है । इससे बडा और कोई उदाहरण सहिष्णुता का मिलेगा क्या? यह उन तथाकथित बुद्धिजीवियों नेताओं के गाल पर जोरदार का तमाचा था।
उन्हें भारत की एकता का भान नही है जिन्होंने असहिष्णुता को हवा देने की कोशिश की । भारत की संस्कृति के रग रग में सहिष्णुता है । हम सब हिंदू मुसलमान एक साथ इसी समाज में बिना भेदभाव के वर्षों से रहते चले आ रहे हैं केवल मुसलमान ही नहीं सिक्ख ईसाई जैन बौद्ध सभी इसी समाज में बिना भेदभाव के रहते हैं । यही नहीं क्यों दूसरी बात करना जब हिन्दुओ में ही
जातिया उपजातिया विभाजित है । पर समाज का ऐसा ताना बाना है जो बडे ही एकता से रहते हैं । पर कोई अचानक आकर नफरत की बात करता है तो उसे भारतीय संस्कृति की जानकारी नहीं है । उसे और भारत को जानना चाहिए । इतनी विविधता और कहाँ पर सहिष्णुता के साथ सनातन संस्कृति के पोषक चले आ रहे हैं ।
वास्तव में भारत के सम भारत है की उक्ति चरितार्थ है। ऐसा अद्भुत देश और कहाँ है । हमे भारतीयों पर एवं भारतीयता पर गर्व है ।
विन्ध्य प्रकाश मिश्र विप्र
नरई संग्रामगढ प्रतापगढ उ प्र
(प्रवक्ता हिंदी सरयू इंद्रा महाविद्यालय संग्रामगढ प्रतापगढ उ प्र)