सहिये इस चाबुक की मार…वीर छंद (आल्हा)
वीर छंद (आल्हा)
संविधान में सबको शिक्षा, औ समानता का अधिकार.
तब क्यों अगड़े पिछड़े बाँटे, आरक्षण की बहे बयार..
क्रायटेरिया से जो ऊपर, जनरल बनकर हुए प्रमोट.
हैं अयोग्य जो नीचे वाले, चयनित होते वे ही खोट..
अनुसूचित को मिले मलाई, पिछड़े सारे खांय पनीर.
जनरल का जल रहा कलेजा, साथ घोंप दी है शमशीर..
अनुसंधानिक जिसमें जज्बा, मन में है सेवा की चाह.
जनरल की वह प्रतिभा कुंठित, चुनती आज विदेशी राह..
आरक्षण निर्द्वन्द नाचता. नेतागण इसके सरताज.
सारे जनपद दरकिनार कर, सिर्फ सैफई चमके आज..
चमक रहा प्रिय नाम इटावा, जगमग मैनपुरी है यार.
क्षेत्रवाद औ जातिवाद के, सहिये इस चाबुक की मार..
बाँट बाँट के राज्य करें वे, सबको आज रहे भरमाय.
केवल वोटों के चक्कर में, आरक्षण को पाले जांय..
आरक्षित से क्योंकर दूरी, है विश्वास अगर कुछ शेष.
नेताजी अब निज इलाज हित, उड़कर जाना नहीं विदेश..
चयन नहीं हो पाया जिसका, आरक्षण ने मारी मार.
फाँसी पर कुंठित हो लटकी, वही बालिका नाजुक नार..
माफ़ कीजिए हमको पापा, नंबर सौ में सौ थे आज.
बेटी मैं सामान्य वर्ग की, तभी गिरा दी मुझ पर गाज..
एन० सी० सी० की कैडेट मैं थी, अनुशासन में था विश्वास.
यद्यपि गुण अधिकारी के थे, तब भी असफल, चयनित ख़ास..
मजबूरी में फाँसी झूली, सरिता लिखे सुसाइड नोट.
हत्यारी सरकार हमारी, आरक्षण सिस्टम की खोट..
लागू अंग्रेजों के द्वारा, अनुगामी अपनाते लीक..
फूट डालकर राज्य करो बस, आरक्षण ऐसी तकनीक..
चुभा रहा विषदंत हमें ही, औ अयोग्य को दे उपहार.
मणि आभूषित सर्प सरीखा, हत्यारा आरक्षण, मार..
मिला बढ़ावा आज नक़ल को, मेरिट से है जिसका मेल.
चयन परीक्षा ही हो लागू, ख़त्म करें ये कुत्सित खेल.
कहते पिछड़े गए दबाये, तभी हुआ आरक्षण प्राप्त.
अर्धशतक से ज्यादह बीता, इतना अवसर है पर्याप्त..
मुकाबले में ठहरें बेहतर, उनमें भरें आत्मविश्वास.
पिछड़ों को दें सुविधा कोचिंग, फीस किताबें फ्री आवास..
मानवता यदि शेष अभी कुछ, चाहें बेहतर बने समाज.
है अभिशाप और अति घातक, ख़त्म करें आरक्षण आज..
–इंजी० अम्बरीष श्रीवास्तव ‘अम्बर’