सहारा
साथिया एक सहारा है ,
जब बेबसी बगावत करती है और आंधी, अंधी गलियों से गुजरता है ।
साथिया एक सहारा है ,
जब विचार हवा में उड़ता है
बिखर कर फिर समेटकर ,
व्यवहार का चोला पहन लेता है ।
साथिया एक सहारा है ,
जब कोई ख़ुशी आँखों से छलकती है ,,तो
कोई नमकीन अहसास बन जाते है ।
साथिया एक ,,,,,,,,,,,है ,
जब कल्पना के उड़ते परिंदे
स्मृति के शिलालेख बन जाते है ।
साथिया ,एक ,,,,,,,,है
वहः तो बस ओस में भीगते रहने के मौसमी मजबूरी और जीने का तकाजा बन जाते है ।
साथिया ,,,,,,,,,,है
बुढ़ापे में कपूत के भाग्य का मारा ,,
लकड़ी ही खड़े रहने, चलने का सहारा बन जाते है ।
साथिया,,,,है ,,
उसे मकान ,खेत ,दुकान से दखल कर वो बेचारा अनाथ आश्रम का सहारा बन जाते है ।
सताती भूख तो बहते अक्षु नयनो में राह चले मांगने भीख का सहारा बन जाते है ।
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✍प्रवीण शर्मा ताल
जिला रतलाम
त्तहसील ताल
स्वरचित कापीराईट कविता
दिनांक 28/04/2018
मोबाईल नंबर 9165996865