सहायता प्राप्त विद्यालयों के हिंदू प्रबंधकों के साथ भेदभाव क्यों ?
सहायता प्राप्त विद्यालयों के हिंदू प्रबंधकों के साथ भेदभाव क्यों ?
■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■■
आजादी के बाद के पहले और दूसरे दशक में बड़ी संख्या में समाज-सेवा की भावना से उत्तर प्रदेश में अशासकीय विद्यालयों की स्थापना हुई । 1971 में सरकार ने इनके सहायताकरण का कानून बनाया । सहायताकरण का अर्थ यह था कि अध्यापकों को सरकारी खजाने से वेतन मिलेगा । इसमें हमें कोई आपत्ति नहीं है।
समस्या 1972 से शुरू हुई ,जब सहायता प्राप्त विद्यालयों पर इंस्पेक्टर-राज थोपने का अभियान चल पड़ा । गैर-हिंदू प्रबंधक अल्पसंख्यक के आवरण में ज्यों के त्यों रहे । उनका पहले के समान चपरासी से लेकर प्रधानाचार्य तक नियुक्त करने का अधिकार बरकरार रखा गया।
गाज केवल हिंदू प्रबंधकों पर गिरी। केवल हिंदुओं के द्वारा स्थापित सहायता प्राप्त विद्यालयों में संचालन का अधिकार एक-एक करके कानून बनाकर सरकार ने अपने अधिकार में लेना शुरू कर दिया । यह नौकरशाही के दिमाग की उपज थी । न सरकार के मंत्री और न अध्यापक इस इंस्पेक्टर-राज के दुष्परिणामों को समझ पाए।
वर्तमान स्थिति यह है कि इंस्पेक्टर-राज में सभी दुखी हैं। हिंदुओं का एक मात्र अपराध यही है कि वे बहुसंख्यक कहे जाते हैं।
———————-
लेखक : रवि प्रकाश ,,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451