सहानुभूति के दो शब्द
हर लेते हैं
मन की सारी पीड़ाएँ
जब भी कोई बोलता है
सहानुभूति के दो शब्द।।
क्षण मात्र में ही
हृदय भाव विहवल हो उठता है
जाने कितनी ही व्यथाएं
उमड़-घुमड़ पड़ती हैं
और हो जाते हैं
नयन हमारे अश्रुपूरित
जब भी कोई बोलता है
सहानुभूति के दो शब्द।।
अनगिनत वेदनाओं के
प्रज्जवलित हो उठते हैं
क़तार बध्द हृदय में दीप
मन के जाने-अन्जाने
कितने ही दुःख हर लेते हैं
जब भी कोई बोलता है
सहानुभूति के दो शब्द।।
शब्द यह निर्जीव पर-
कितने ही रुग्ण तनों की आत्माओं में
जीने का प्राण फूंकते हैं
अधखिला कुंजन को
कर देते कुटज
और उसमें भर देते हैं
सुंदरता के मोहक रंग
जब भी कोई बोलता है
सहानुभूति के दो शब्द।।
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सरफ़राज़ अहमद “आसी”