सहसा यूं अचानक आंधियां उठती तो हैं अविरत,
सहसा यूं अचानक आंधियां उठती तो हैं अविरत,
समुंदर के दृढ़ पर धैर्य यूं टूटा नहीं करते।
कि यादों के समुंदर अश्क बनकर झरते हैं “अभिमुख”
परंतु यूं ह्रदय शीशों से भी टूटा नहीं करते।
अभिषेक सोनी “अभिमुख”
सहसा यूं अचानक आंधियां उठती तो हैं अविरत,
समुंदर के दृढ़ पर धैर्य यूं टूटा नहीं करते।
कि यादों के समुंदर अश्क बनकर झरते हैं “अभिमुख”
परंतु यूं ह्रदय शीशों से भी टूटा नहीं करते।
अभिषेक सोनी “अभिमुख”