सहधर्मिणी
पाकर साथ तुम्हारा हूं मैं अति सौभाग्यशाली!
बीते गए वर्ष 32 नहीं कभी कोई गुफ्ता गाली!!
सहपाठी-सहधर्मिणी सा साथ निभाया तुमने,
तुम हो उपवन मेरा, मैं हूं बस उस्का माली!!
सुख में सारे रिश्ते-नाते सब दे सकते साथ!
तुम्हे तो आता है दुख में भी खूब बजाना ताली!!
सोचता हूं कहां से लाते हो इतनी ऊर्जा?
सारे दिन दमकटी हो जैसे भोर की हो लाली!!
तुम्हारे मुस्कुराहटो में छिपी है मेरी ऊर्जा,
जिसमें छुपी है मेरी चाहतों की गुरबत गाली!!
उलाहना कभी नहीं देती चाहे कितनी भी तंग हो,
सब्र के सौष्ठव की तुम हो गुजरिया मतवाली!!
विदेशी संस्कृति प्रभाव में नहीं निभती 5-7साल,
मैंने तो साथ सात जन्मों की शपथ भी खाली!!
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट कवि पत्रकार सिकंदरा आगरा -282007मो;9412443093