सहज बन जाती
सहज बन जाती
उदासी नहीं मुस्कान अब रहती
गम नहीं मधुर स्मृतियां सहज लेती।
वेदनाएं कैस भी नहीं हमें सतातीं
खुशी छोटी-छोटी सी मैं समेट लेती।
हम तो मजबूत राही इरादें अटल रहती
खौफ हमारे राह से हट रास्ता दिखाती।
वर्जनाओं की हमको जरूरत नही रहती,
कि समस्या का हल तुरंत ढूंढ लेती।
विश्वास निज कर्मों पर सपने गढ़ लेती,
सामने हो जो कोई चेहरा पढ़ लेती
अब तो रजनी भी तारे खिलाती नही।
अब न दिखते निशा में वो जुगुनू कहीं।
गीत उपवन मे कोयल भी गाती नही।
आप सबसे हमें इतनी ताकत मिली।
राह रोड़े भी हमें अब गिरने नहीं देती
इतना मजबूत हुआ मैं बनी वो पथिक।
अब तो तारीफ नफरत नही सुहाती
अपने कर्म काम में अविरल लगी रहती
नित्य कलम सृजनात्मक पंकज खिलाती
पहुंचा सभी के पास महक इत्र सा फैलाती
अपने आप में रहकर अपनी खुशियां पाती।
-सीमा गुप्ता अलवर राजस्थान
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