Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Oct 2021 · 10 min read

सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक का चौथा वर्ष 1962-63: एक अध्ययन

“सहकारी युग” हिंदी साप्ताहिक ,रामपुर, उत्तर प्रदेश का चौथा वर्ष 1962 – 63 : एक अध्ययन
______________________________
समीक्षक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
_______________________________
सहकारी युग ने इस वर्ष राष्ट्रीय स्वाभिमान को जगाने का महत्वपूर्ण कार्यभार अपने कंधों पर उठाया और भारतीय जनता में आशा ,उत्साह और देश प्रेम का अभिनव संचार किया । 1962 के चीन युद्ध की छाया भारतीय चिंतनशील मनीषा ने बहुत पहले से ही अनुभव कर ली थी । सहकारी युग ने सिलसिलेवार और प्रायः हर अंक में राष्ट्र की वेदना और अनुभूति को वाणी दी । यह सहज ही कहा जा सकता है कि राष्ट्रीय चेतना ,जन-जागरण और देशभक्ति का शंखनाद इस दौर में सहकारी युग की प्रत्येक पंक्ति से अभिव्यक्ति पाता रहा । उसने “भारतीय लोकतंत्र के सामने चीन और पाकिस्तान को एक वाह्य समस्या के रूप में “अनुभव किया और देश को याद दिलाया कि “आज के युग में वही देश सम्मान प्राप्त कर सकता है जिसने अपने पैरों पर खड़ा होना सीख लिया है तथा जिसमें अपनी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने की क्षमता है । ” इतना ही नहीं सांस्कृतिक एकता का आह्वान करते हुए सहकारी युग ने राम और कृष्ण को समस्त भारतीयों के पूर्वज स्वीकार न किए जाने की कतिपय क्षुद्र मनोवृति पर प्रहार करते हुए स्पष्ट कहा कि “उन्हें पूर्वज न स्वीकार करने से भारत की राष्ट्रीय एकता प्राप्त करने के स्थान पर अपनी सांस्कृतिक एकता से भी हाथ धोना पड़ेगा ।”( संपादकीय 15 अगस्त 1962 )
युग धर्म को निभाते हुए सहकारी युग के प्रष्ठों पर ब्रह्मदत्त द्विवेदी मंजुल की लंबी कविता “चीन को चेतावनी” 36 पृष्ठ के विशेषांक का मुख्य आकर्षण बन गई थी। (दिनांक 15 – 8 – 1962 )
राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन के जन्मदिवस पर उनकी चिरायु कामना करते हुए सहकारी युग ने संपादकीय टिप्पणी में प्रतिपादित किया कि “डॉ राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शन को पाश्चात्य दार्शनिकों एवं वैज्ञानिकों के सम्मुख उनकी ही पद्धति से रखकर केवल भारत का ही मस्तक ऊंचा नहीं किया अपितु भौतिक विज्ञान से संचालित पश्चिम में भी अध्यात्म के प्रति आस्था उत्पन्न की ।”(दिनांक 8 – 9 – 1962 )
बापू के संदेश का अनुसरण न हो पाने को सहकारी युग राष्ट्रीय क्षति मानता है और इसका कारण स्वातंत्र्योत्तर भारतीय राजनीति में राष्ट्रपिता “बापू की कल्पना के कार्यकर्ताओं के स्थान पर मक्कार , स्वार्थी और गंदी राजनीति से सने हुए” लोगों का आना बताता है । (दिनांक 30 सितंबर 1962 ,संपादकीय)
विजयदशमी पर्व पर सहकारी युग ने उत्तर प्रदेश के सहकारिता मंत्री चतुर्भुज शर्मा की लेखनी से राष्ट्र सुरक्षा विषयक लंबा लेख छापा और ऋग्वेद की मंगल कामना दोहराई कि “हमारे ध्वज फहराते रहे ,हमारे बाण विजय प्राप्त करें ,हमारे वीर वरिष्ठ हों, देवगण युद्ध में हमारी विजय करवा दें ।”(16 अक्टूबर 1962 )
31 अक्टूबर 1962 के अंक में जहां एक ओर रामावतार कश्यप पंकज ने भारतीय राष्ट्रीय स्वाभिमान को स्वर देती ओजस्वी कविता लिखी : “अभी राम का शर इधर ही बढ़ेगा ,जिधर मेघ यों रक्त बरसा रहे हैं “,वहीं दूसरी ओर संपादकीय लिखता है ” चीनी आक्रमण ने भारत के कण-कण में क्रोध और क्षोभ उत्पन्न कर दिया है और आज बूढ़े से लेकर बालक तक अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए मचल उठे हैं ।” पत्र ने श्री नेहरू द्वारा की गई सोने की अपील का महत्व जनता को बताते हुए स्मरण कराया कि भारत का ” इतिहास साक्षी है कि देश ने समय को समझा है। महाराणा प्रताप की पुकार पर भामाशाह ने अपना सर्वस्व दे डाला था । आज फिर वही चुनौती है । अतः यदि जमीन में दबा हुआ या अनावश्यक रूप से हमारे शरीरों पर लादा हुआ यह सोना इस समय देश के काम न आया तो निश्चय यह हमारी गुलामी का तौख बन सकता है ।”
एक बार फिर इस देश की आत्मा को झकझोरते हुए सहकारी युग ने लिखा कि “यद्यपि भारतीय इतिहास के हर पृष्ठ ,हर पंक्ति और हर शब्द की आत्मा शांति और सद्भावना का संदेश दे रहे हैं तथापि आज जबकि आतताई चीन ने बर्बरता पूर्ण आक्रमण के द्वारा हमारे समाधिस्थ नगराज हिमालय के द्वार पर दस्तक दी है तो हमें समर्थ रामदास और शिवाजी का स्मरण कर शांति स्थापित रखने के लिए युद्ध का आश्रय लेना होगा ।” पत्र अत्यंत भावुक शैली में लिखता है : “वास्तव में इस देश का हर कण, हर क्षण इन सेनानियों के प्रति ऋणी है, जो आक्रमणकारी चीन और भारतीय स्वतंत्रता के बीच सीना तान कर खड़े हैं तथा अपने शहादत के खून से हिमालय के बर्फानी श्वेत शरीर को लालिमा प्रदान कर रहे हैं ।” शस्त्रों के लिए सोना चाहिए ,इसलिए पत्र कहता है: “हम भारतीय इकट्ठा स्वर्ण को अब भार समझने लगें अपनी स्वतंत्रता के लिए और उन नवयुवकों के लिए जिन्होंने जीवन का सबसे सुंदर समय तरुणावस्था दान दे दिया और जो जीवन की अन्य अवस्थाओं को देख नहीं पाएंगे । जो संतान का सुख अनुभव नहीं कर सकेंगे ,जिन्हें सूर्योदय और सूर्यास्त के समय हिमालय की लाल बर्फ को देखकर हम केवल याद करेंगे ,सदा सर्वदा।” ( 10 नवंबर 1962 ,संपादकीय )
भारतीय समाज को उन अमर शहीद हिंदुस्तानी जवानों की याद दिलाते हुए जो कि हिमालय की छाती पर पड़ने वाले चीन के नापाक कदम अपने सीने पर रोकने की गरज से बर्फ की चादर ओढ़ कर हिमालय की गोद में सो गए हैं, सहकारी युग पुनः आह्वान करता है कि “आज जरूरत इस बात की है कि हम भारतीय समय की मांग को समझ कर अपने देश की रक्षा के मार्ग में कुर्बान होने वाले जवानों के लिए हर तरह की कुर्बानी करने से पीछे न हटें, वरना इस कठिन वक्त में छुपाया गया सोना-पैसा आदि हमारे माथे का काला टीका बन जाएगा।” ( संपादकीय 19 नवंबर 1962 )
रामपुर में महिला मंगल परिषद की 22 महिलाओं द्वारा स्वर्ण-दान की विस्तृत सूची छाप कर सहकारी युग ने जनता का उत्साह बढ़ाया । छोटे-छोटे बच्चों का त्याग बड़ा ही उत्साहवर्धक था । जैसे कि : “आठ वर्ष की एक लड़की ने भैया दूज पर भाई से मिले पाँच रुपए सुरक्षा कोष को दिए ।” (दिनांक 19 नवंबर 1962 ) अथवा टैगोर शिशु निकेतन ,रामपुर के ” कक्षा पंचम के नरेंद्र गुप्ता नामक शिशु ने एक सोने की अंगूठी भी रक्षा कोष में दी ।” (दिनांक 10 नवंबर 1962 )
चीन द्वारा युद्ध विराम की नीति को समझते हुए सहकारी युग ने साफ-साफ लिखा कि “भारत के बच्चे-बच्चे ने इस जाल में न फंसने और आक्रमणकारी को एक-एक इंच भारतीय भूमि से खदेड़ने का निश्चय किया है।” सहकारी युग के मतानुसार सरकार को “युद्ध की अनवरत तैयारी ,युवकों को सैनिक प्रशिक्षण ,धन संग्रह ,रक्तदान आदि के द्वारा पूरी आन-बान के साथ खड़े होने और समय आते ही रणभेरी की ध्वनि पर प्राणों की आहुति देने के लिए प्रचलन कर सकने की क्षमता उत्पन्न करते रहना होगा ।”(दिनांक 24 नवंबर 1962 ,संपादकीय )
8 दिसंबर 1962 को संपादकीय ने चीन के युद्ध विराम का विस्तृत विश्लेषण किया और निष्कर्ष प्रकट किया कि “विश्व के बहुत बड़े भाग से लताड़ पाकर चीन को वापस हटना पड़ा। चीन की आंतरिक राजनीति और अर्थनीति भी इसी समय छिन्न-भिन्न होने को थी, यदि चीनी नेता भारत के विरुद्ध आरंभ किए गए युद्ध को पूर्ण युद्ध का रूप दे देते । अतः यह समझ कर कि चीनी आक्रांता लौट सकता है, हमें अपने सुरक्षा प्रयत्न जारी रखने हैं।” इसी अंक में श्री गिरिवर ने चीन की दोस्ती का नकली चेहरा अपने लेख में उतारा है और “चाऊ एन लाई के नाम पत्र” नामक लेख में रामावतार कश्यप पंकज ने भारतीय जनमत को अभिव्यक्ति दी है ।
सुरक्षा के प्रश्न से जूझ रहे राष्ट्र को स्वामी विवेकानंद की कर्मवादी श्रममूलक शिक्षाओं का स्मरण कराते हुए सहकारी युग ने आह्वान किया कि “स्वामी जी का यह पाठ आज की स्थिति में यदि हर भारतीय को पढ़ा दिया जाए तो निश्चय ही वह स्थिति पुनः न आए जिससे हमें चीन या किसी अन्य साम्राज्यवादी देश के हाथों अपमानित होना पड़े।”( संपादकीय 12 जनवरी 1963 )
26 जनवरी 1963 का 36 प्रष्ठीय विशेषांक राष्ट्र जागरण का महामंत्र बनकर प्रकट हुआ। इस विशेषांक का प्रत्येक पृष्ठ चीनी आक्रमण के विरुद्ध भारतीय आक्रोश की अभिव्यक्ति कर रहा है। कविताएं , कहानियाँ ,लेख आदि सभी राष्ट्रीय चेतना से संपूर्णतः आपूरित हैं। चीनी आक्रमण को चीनी जनता की भुखमरी, गरीबी आदि से “चीनी जनता का ध्यान बंटाने के लिए तथा उसे सत्य से दूर रखने के लिए चीनी तानाशाहों” की विश्वासघाती कार्यवाही बताते हुए सहकारी युग ने कहा कि “चीन की सेनाओं द्वारा किए गए बर्बर आक्रमण से आज सारा देश जाग उठा है । प्रधानमंत्री की एक पुकार पर समस्त भारतवासी ,बालक, युवा ,वृद्ध ,स्त्री-पुरुष अपने देश पर सब कुछ बलिदान करने के लिए तैयार हैं । इतिहास ने फिर करवट ली है और अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के पश्चात चीनियों को देश की पवित्र भूमि से ढकेल फेंकने का शुभ अवसर आज फिर आ गया है । ” पत्र आह्वान करता है : “राम और कृष्ण को पूर्वज मानने वालों ! महाराणा प्रताप और शिवाजी की संतानों ! रणभेरी आज फिर बज उठी है । मातृभूमि आज फिर बलिदान मांगती है तन ,मन का और धन का । यह निश्चित है कि विजय सत्य की ही होगी, हमारी ही होगी ,सत्यमेव जयते ।” (संपादकीय 26 जनवरी 1963 )
इसमें प्रधानमंत्री के पीछे खड़े होकर राष्ट्र की एकजुटता संपादकीय में जो प्रगट हो रही है ,वह अभिनंदनीय है तथा रेखांकित किए जाने के योग्य है ।
9 मार्च 1963 को होली अंक में सहकारी युग ने लिखा कि इस वर्ष होली पर “हमारे मस्तक पर वह गुलाल लगेगा जिससे देश का मस्तक उन्नत हो ,हमारे शरीर उस रंग में भीगेंगे जो सीमाओं की रक्षा के निमित्त हर क्षेत्र में हमें तत्परता प्रदान करें।” जाहिर है चीनी आक्रमण के पश्चात राष्ट्र की सात्विक बल-वृद्धि ही उपरोक्त संकल्प में अभिव्यक्त हो रही थी ।”
“वर्तमान जनतंत्र के धुंधले क्षितिज में न्यायपालिका ही आशा की किरण” है, ऐसा बताते हुए सहकारी युग ने मत व्यक्त किया कि “न्यायपालिका पर आज भी जनता का विश्वास अधिक है और राजनीतिक सत्ता को निरंकुश होने से रोकने में यही एकमात्र उपाय है ।”(संपादकीय 16 जून 1963 )
सहकारी युग ने पत्रकारिता को पूजा माना है और इसीलिए पत्रकारिता के क्षेत्र में गलत तत्वों के प्रवेश को उसने सदा एक चुनौती माना है । उसने माना है कि “पत्रकारिता का अर्थ समझने और उसका क्षेत्र पहचानने से पहले यदि कोई व्यक्ति इस राह पर कदम बढ़ाएगा तो यह निश्चय है कि वह या तो कुछ दूर जाकर पस्त हो जाएगा या उन तरीकों को अपनाएगा जिन्हें सभ्य देश के नागरिक जघन्य अपराध की संज्ञा देते हैं ।” सहकारी युग ने पत्रकारिता-मिशन से जुड़े तमाम सहकर्मियों को सदा स्मरण दिलाया है उनके पवित्र ध्येय का ,निस्वार्थ आराधना का और कलम की साधना का । पत्र के मतानुसार : “पत्रकारिता तो कलम एवं मस्तिष्क की विद्या है, जिसे प्राप्त करने के लिए त्याग – तपस्या – साधना का वरण करना होगा और साथ ही साथ कलम के पुजारियों को वर्षों तक पूजना भी होगा।”( संपादकीय 13 जुलाई 1963)
दरअसल लेखनी के प्रति समर्पित निस्वार्थ निष्ठा के बीज से ही महान पत्रकारिता का जन्म लेना संभव है और वह विचार-क्रांति संभव है जो अपनी रोशनी से संसार को अपेक्षित मार्गदर्शन दे सके । समय की चुनौतियों को ,राष्ट्र की पुकार को, मातृभूमि की पीड़ा को अगर सहकारी युग अपनी आत्मा की शक्ति से स्पर्श कर सका है, तो इसका एकमेव कारण उसमें धधकती निर्दोष आग ही रही है ।
“पत्रकारिता या गुंडागर्दी “: शीर्षक से एक अन्य संपादकीय में 27 जुलाई 1963 को सहकारी युग ने एक बार फिर भारतीय समाज को पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रविष्ट हो रहे अवांछनीय और अक्षम अयोग्य तत्वों की भरमार के प्रति सचेत किया । पत्र ने लिखा कि : “गुंडों के हाथों पत्रकारिता का पवित्र पेशा कलंकित हो और सरकार जनतंत्र के पवित्र उसूलों की दुहाई देकर कानों में तेल डाले रहे तो वह दिन निश्चित रूप से आ सकता है जबकि गुंडों की एक बहुत बड़ी संख्या अखबार निकाल-निकाल कर अपराधों को उनकी चरम सीमा पर पहुंचा देगी ।” पत्र प्रश्न करता है कि “कोई भी व्यक्ति जो सिटी मजिस्ट्रेट के कोर्ट में घोषणा पत्र दाखिल करेगा वह अखबार निकाल सकता है ,यह है संविधान की बात । किंतु संविधान यह कब कहता है कि इसके व्यवहारिक पक्ष की उपेक्षा कर दी जाए और पत्रकारिता का पेशा गुंडों के हाथों सौंप दिया जाए ।”
पत्रकारिता को एक मिशन मानकर उच्च और उदात्त मूल्यों को मन में बसा कर सहकारी युग ने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश किया था । जाहिर है ,क्षुद्र और हल्की-ओछी बातें उसे कतई पसंद नहीं रहीं। वैचारिक मतभेद को सहकारी युग ने व्यक्तिगत मतभेद के स्तर पर उतारने से सदा परहेज किया और समस्त पत्र-जगत से यही अपेक्षा भी की। सहकारी युग को ऐसे समाचार पत्रों को देखकर सदा बड़ी पीड़ा हुई है जो अखबार बने हुए हैं और जिन के बहाने पत्रकारिता का धंधा भी खूब चल रहा है, मगर जिनके ” पूरे कलेवर में एक भी वाक्य ठीक नहीं होता और एक भी वाक्य के सब शब्द ठीक नहीं होते । “(दिनांक 10 अगस्त 1963 )
सहकारी युग का 1962 – 63 का सारा साल चीनी आक्रमण के फलस्वरुप उत्पन्न राष्ट्र-चेतना की अभिव्यक्ति को समर्पित रहा ।अधिसंख्य कहानियाँ, लेख, कविताएं इस वर्ष सहकारी युग में इसी विषय पर प्रकाशित हुईं। युग-चेतना ,युगबोध, युग-चुनौती और युग-दायित्व से जुड़कर सहकारी युग ने अपने नाम से जुड़े युग शब्द को अक्षरशः सार्थक किया। ” वाचाल की मीठी बातें ” शीर्षक स्तंभ वर्ष-भर संपादक महेंद्र प्रसाद गुप्त लिखते रहे । अहा ! व्यंग्य करने का क्या चुटकुला अंदाज उनका हुआ करता था । यह स्तंभ नाम लेकर किसी की आलोचना करने के लिए नहीं था अपितु इसमें उन प्रवृत्तियों पर प्रहार किया जाता था ,जिन्होंने हमारे राष्ट्रीय जीवन को खोखला बना कर रख दिया था। इस वर्ष के रचनाकारों में प्रमुख हैं शिवा दत्त द्विवेदी ,देवी राम वशिष्ठ ,विष्णु हरि डालमिया ,महेश राही ,रामावतार कश्यप पंकज ,ब्रह्मदत्त द्विवेदी मंजुल, भगवान स्वरूप सक्सेना ,हृदय नारायण अग्रवाल ,भारत भूषण (मेरठ), अंशुमाली, रमेश शेखर (बदायूं), राम रूप गुप्त ,आनंद सागर श्रेष्ठ ,चतुर्भुज शर्मा ,रामावतार शर्मा, लक्ष्मी नारायण पांडे निर्झर ,वीरेंद्र शलभ, रूपकिशोर मिश्र ,सुरेश्वर ,गिरिवर ,जय भगवान कपिल मयंक ,बृजमोहन ,रोशन लाल गंगवार ,देवर्षि सनाढ्य (गोरखपुर विश्वविद्यालय), डॉक्टर सत्यकेतु विद्यालंकार ,मोहन कुकरेती ,उरूस जैदी बदायूँनी ,सुरेश अनोखा (नई दिल्ली) ,श्री शैलेंद्र ,रामस्वरूप ,रघुवीर शरण दिवाकर, धनेश चंद्र विकल ,चंद्रशेखर गर्गे ,एम.एस. त्यागी ,निरंजन, मुन्नू लाल शर्मा रामपुरी, त्रिलोचन ,नलिन विलोचन ,विश्वमोहन ,देवेंद्र, नरेंद्र चंचल । मुख्यतः रामावतार कश्यप पंकज का कवि ,कहानीकार ,लेखक के रूप में वर्ष-पर्यंत भरपूर सहयोग पत्र को मिला। साथ ही महेश राही की कविताएं, कहानियां काफी मात्रा में प्रकाश में आईं। कवि के रूप में प्रायः वीरेंद्र शलभ और ब्रह्मदत्त द्विवेदी मंजुल तथा अक्सर शिवादत्त द्विवेदी की रचनाएं पत्र को गरिमा प्रदान करती रहीं। कविवर भारत भूषण तथा देवर्षि सनाढ्य इस वर्ष तक अत्यंत आत्मीयता के साथ सहकारी युग से जुड़ गए थे । कहने की आवश्यकता नहीं कि पत्र अब रामपुर अथवा रूहेलखंड ही नहीं अपितु भारत भर के साहित्याकाश का जगमगाता सितारा बनकर उभरने लगा था तथा निष्पक्ष और पैने चिंतन के चितेरों में तो इसकी लोकप्रियता निर्विवाद रूप से स्थापित हो चुकी थी ।

412 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
Khám phá thế giới cá cược tại 88BET club qua link 188BET 203
Khám phá thế giới cá cược tại 88BET club qua link 188BET 203
188BET 203.4
I love you
I love you
Otteri Selvakumar
वक्त अपनी करवटें बदल रहा है,
वक्त अपनी करवटें बदल रहा है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
3586.💐 *पूर्णिका* 💐
3586.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
झूठी है यह जिंदगी,
झूठी है यह जिंदगी,
sushil sarna
उन्नति का जन्मदिन
उन्नति का जन्मदिन
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
कोई पढे या ना पढे मैं तो लिखता जाऊँगा  !
कोई पढे या ना पढे मैं तो लिखता जाऊँगा !
DrLakshman Jha Parimal
गवर्नमेंट जॉब में ऐसा क्या होता हैं!
गवर्नमेंट जॉब में ऐसा क्या होता हैं!
शेखर सिंह
दिल की फरियाद सुनो
दिल की फरियाद सुनो
Surinder blackpen
सूखता पारिजात
सूखता पारिजात
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
जिंदगी का कागज...
जिंदगी का कागज...
Madhuri mahakash
ज़िंदा एहसास
ज़िंदा एहसास
Shyam Sundar Subramanian
धूल-मिट्टी
धूल-मिट्टी
Lovi Mishra
dont force anyone to choose me, you can find something bette
dont force anyone to choose me, you can find something bette
पूर्वार्थ
सब खो गए इधर-उधर अपनी तलाश में
सब खो गए इधर-उधर अपनी तलाश में
Shweta Soni
बेटियाँ
बेटियाँ
Raju Gajbhiye
#आज_का_आलेख
#आज_का_आलेख
*प्रणय*
"सुकून"
Dr. Kishan tandon kranti
गुमाँ हैं हमको हम बंदर से इंसाँ बन चुके हैं पर
गुमाँ हैं हमको हम बंदर से इंसाँ बन चुके हैं पर
Johnny Ahmed 'क़ैस'
श्री कृष्ण
श्री कृष्ण
Vandana Namdev
*नर से कम नहीं है नारी*
*नर से कम नहीं है नारी*
Dushyant Kumar
मान जाने से है वो डरती
मान जाने से है वो डरती
Buddha Prakash
ऐसा कभी क्या किया है किसी ने
ऐसा कभी क्या किया है किसी ने
gurudeenverma198
🙂
🙂
Chaahat
पत्रकार की कलम देख डरे
पत्रकार की कलम देख डरे
Neeraj Mishra " नीर "
रिश्तों की बंदिशों में।
रिश्तों की बंदिशों में।
Taj Mohammad
The darkness engulfed the night.
The darkness engulfed the night.
Manisha Manjari
दूरी और प्रेम
दूरी और प्रेम
शालिनी राय 'डिम्पल'✍️
*भारत भूषण जैन की सद्विचार डायरी*
*भारत भूषण जैन की सद्विचार डायरी*
Ravi Prakash
गुरु पूर्णिमा
गुरु पूर्णिमा
Dr.Priya Soni Khare
Loading...