सस्ती क़ीमत पे मेरे बाज़ार में
सस्ती कीमत पे मेरे बाजार में बिकने के चर्चे बड़े
माहौल बदला देखकर मेरे खरीददार सोच में खड़े
बेशक हमारे पुराने चित्र के संग चरित्र पुराना नहीं
हमारे माथे पे दो कौड़ी दाम के पोस्टर चिपके पड़े
कुछ पाने की चाह में खुद बिकने आये बाजार हम
मूल्यों की अमूलता देखो खरीददार आपस में लड़े
कई बस्तियों से गुजरा हूँ मैं स्वतन्त्रता नहीं चाहिए
जंगल के बहाने शहरों से पैरो में जंजीरे मेरी है पड़ें
जानवर अचंभित की कैसा कानून शहर में है लागू
श्वान खुले भौकते शेरोँ की दहाड़ पे कानून है कड़ें
मेरा धैर्य जवाब देता दोस्तों शौर्य कहाँ से लाऊँ मैं
गाँव से शहर आया पर यहाँ रिश्ते मिले है गले सड़ें
नया दृश्य देख़ो मेरे बिकने की यात्रा का तुम लोगों
लानत मुझ पे की मेरे खरीददार गहरी सोच में पड़े
बहर पुरानी तंग काफ़िया देश मेरा सलामत रहेगा
वतन की रक्षा में हम बाजार में बिकेंगे खड़ें खड़े
अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से